रिपोर्ट: दिवाकर मिश्रा ,डुमरिया संवाददाता
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गया जिले का डुमरिया प्रखंड, जिसे कभी “काला पानी” के नाम से जाना जाता था, अब विकास और शांति की नई मिसाल बन गया है। यह इलाका कभी नक्सलियों की क्रूरता और लाल आतंक का गढ़ था, जहां जन अदालतों में खुलेआम सजा-ए-मौत सुनाई जाती थी और नक्सली बंदूकों की आवाज़ें आम थीं। लेकिन अब, यहां विकास की रोशनी फैल रही है, और इलाके ने अपनी पहचान बदल ली है।
लाल आतंक का खौफनाक दौर
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1990 और 2000 के दशक में डुमरिया, इमामगंज, बांके बाजार जैसे इलाकों में नक्सलियों का समानांतर शासन चलता था। लाल झंडे के नाम पर जमींदारों की जमीनों पर कब्जा किया जाता था। 2009 में नारायणपुर के मुखिया छोटे खां के घर को डाइनामाइट से उड़ा देना, मध्य विद्यालय और मोबाइल टावरों पर बम विस्फोट, और बसों को जलाकर राख करना नक्सली क्रूरता के भयानक उदाहरण थे। तीन दर्जन से ज्यादा हत्याएं, अपहरण और जबरन वसूली के कारण यह इलाका खून से लाल हो गया था।
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शांति की बहाली: जवानों की तैनाती और विकास की शुरुआत
समय बदला और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और कोबरा बटालियन की तैनाती ने इस इलाके की तस्वीर बदल दी। सड़कों, पुलों और संचार सुविधाओं का निर्माण हुआ। सुरक्षा बलों ने न केवल नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाया, बल्कि जनता का विश्वास जीतने के लिए सोलर लाइट, रेडियो, कपड़े, पानी और दवाइयों की भी व्यवस्था की।
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पुलिस और जनता के बीच संबंध सुधारने के लिए “पुलिस-पब्लिक रिलेशन” कार्यक्रम शुरू किए गए। नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए पुनर्वास योजनाएं चलाई गईं, जिनके तहत उन्हें आर्थिक सहायता और रोजगार प्रदान किए गए। कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया और जंगलों में चलाए गए अभियानों में कई बड़े नक्सली नेता मारे गए।
विकास से मिली नई पहचान
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आज, डुमरिया में थाना, पुस्तकालय और पंचायत भवन जैसी सुविधाएं हैं, जो विकास की कहानी बयां करती हैं। शिक्षा, संचार और बुनियादी ढांचे के विकास ने इलाके को नई पहचान दी है। आम जनता का विश्वास सुरक्षा बलों पर बढ़ा है, और नक्सलियों की कमर टूट चुकी है। डुमरिया का यह बदलाव न केवल गया जिले बल्कि पूरे बिहार के लिए एक प्रेरणा है। जहां कभी लाल सलाम और गोलियों की गूंज थी, अब वहां विकास और शांति का संदेश है।