माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के शिकंजे में फंसे बिहार के कटिहार जिले के संजीव ठाकुर (32) ने रविवार को हरियाणा के जिंद में आत्महत्या कर ली। वह लगातार लोन रिकवरी एजेंट की धमकियों से परेशान था। आत्महत्या से पहले संजीव ने एक लाइव वीडियो बनाया, जिसमें उसने अपनी बेबसी और रिकवरी एजेंट के उत्पीड़न की कहानी बताई।
4 गैर-बैंकिंग कंपनियों से लिया था लोन
संजीव ठाकुर ने अपने गांव कनदरपैली में चार गैर-बैंकिंग समूहों से सात लाख रुपये का लोन लिया था। यह लोन उन्होंने अपनी बच्ची की बीमारी, पत्नी के इलाज और पारिवारिक जरूरतों को पूरा करने के लिए लिया था। इनमें से दो कंपनियों का लोन चुका दिया गया था, लेकिन बाकी की किस्तें चुकाना उनके लिए भारी पड़ रहा था।
वीडियो में बयां की दर्दनाक दास्तां
आत्महत्या से पहले बनाए गए वीडियो में संजीव ने कहा, “कर्ज वसूलने वाले मुझे जीने नहीं दे रहे हैं। मुझे 102 डिग्री बुखार है और मेरी तबीयत खराब है। मैं जिंदा नहीं रह सकता। सभी को प्रणाम। अब मैं जा रहा हूं।” यह वीडियो उसकी बेबसी और मानसिक यातना की गवाही है।
मजदूरी कर भर रहा था किस्तें
मृतक की पत्नी किरण देवी ने बताया कि संजीव हरियाणा के जिंद में मजदूरी कर परिवार का पेट पालते थे और लोन की किस्तें भरने की कोशिश कर रहे थे। बीमारी के कारण वह लगातार काम पर नहीं जा पा रहे थे, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो गई। इस बीच, रिकवरी एजेंटों ने लगातार फोन कर धमकियां दीं और मानसिक दबाव बनाया।
परिवार की टूटती उम्मीदें
घटना के दिन किरण देवी सब्जी लेने गई थीं। जब वह 20 मिनट बाद लौटीं, तो देखा कि उनका पति फांसी के फंदे से झूल रहा था। किरण का कहना है, “काम-धंधा ठीक से नहीं चल रहा था, लेकिन रिकवरी एजेंट बार-बार फोन कर परेशान कर रहे थे। यही दबाव उनकी जान का कारण बना।”
माइक्रोफाइनेंस कंपनियों का जालः एक स्याह हकीकत
बिहार और देश के अन्य ग्रामीण इलाकों में माइक्रोफाइनेंस कंपनियां तेजी से अपने पैर पसार रही हैं। मामूली कागजी प्रक्रिया के बाद 1-2% मासिक ब्याज दर पर लोन देने का दावा करने वाली ये कंपनियां वास्तव में सरकारी बैंकों की तुलना में 2-2.5 गुना अधिक ब्याज वसूलती हैं। इन कंपनियों के वसूली एजेंटों का बर्ताव भी अक्सर अमानवीय होता है, जो गरीब और जरूरतमंद लोगों को मानसिक रूप से तोड़ देता है।
सवालों के घेरे में माइक्रोफाइनेंस का मॉडल
संजीव ठाकुर की आत्महत्या ने एक बार फिर माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के काम करने के तरीके और इनके एजेंटों की दबंगई को उजागर किया है। यह घटना केवल एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं है, बल्कि ऐसे सैकड़ों मामलों की बानगी है, जिनमें गरीब और असहाय लोग इन कंपनियों की चपेट में आकर अपनी जान गंवा देते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ता कर्ज का बोझ
बिहार का शायद ही कोई गांव बचा हो, जहां माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने अपना जाल न बिछाया हो। ये कंपनियां जरूरतमंदों को आर्थिक मदद का लालच देकर उन्हें ऊंचे ब्याज दर और कड़ी शर्तों के जाल में फंसा लेती हैं। नतीजा यह होता है कि ग्राहक डिप्रेशन और वित्तीय दबाव का शिकार हो जाते हैं।
ग्रामीण और सामाजिक संगठनों की मांग
इस घटना के बाद ग्रामीण और सामाजिक संगठनों ने माइक्रोफाइनेंस कंपनियों पर लगाम लगाने और कर्ज वसूली के मानवीय तरीकों को अपनाने की मांग की है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार और प्रशासन इन कंपनियों की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए कदम उठाएंगे, या फिर ऐसी घटनाएं यूं ही जारी रहेंगी?