गया। गया रेलवे स्टेशन और आसपास की झुग्गी-बस्तियों में पलने वाले वे बच्चे, जिनके हाथों में कभी भीख का कटोरा या प्लास्टिक की थैली हुआ करती थी, अब किताबें थामे भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं।
इस बदलाव के पीछे है पीपुल फर्स्ट एजुकेशन चैरिटेबल ट्रस्ट, बोधगया द्वारा संचालित एक पहल—रेस्क्यू जंक्शन सिक्योर प्रोजेक्ट, जिसने शिक्षा से वंचित बच्चों के जीवन को नई दिशा देने की जिम्मेदारी उठाई है।
एक नई शुरुआत, एक नई राह
शुक्रवार को इस निःशुल्क विद्यालय का उद्घाटन गया नगर निगम के मेयर गणेश पासवान और इनरव्हील क्लब ऑफ गया की सीजीआर सीखा रानी ने संयुक्त रूप से किया। संस्था की अध्यक्षा श्रीमती गोपा सिन्हा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए इस पहल के पीछे की सोच साझा की—
“इन बच्चों को हमने स्टेशन की भीड़ में भटकते देखा। वे न तो स्कूल जाते थे, न कोई उन्हें रोकता था। हमने तय किया कि अगर कोई कदम उठाना है, तो अभी।”
सिर्फ स्कूल नहीं, एक संरक्षण
‘सिक्योर प्रोजेक्ट’ के तहत कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जा रही है। ये वे बच्चे हैं जो या तो अनाथ हैं, या फिर जिनके माता-पिता शिक्षा के महत्व को समझने में असमर्थ हैं।
विद्यालय में न केवल पढ़ाई होती है, बल्कि बच्चों के लिए यूनिफॉर्म, किताबें, स्टेशनरी, बैग और हर दिन पौष्टिक भोजन की भी व्यवस्था की गई है—ताकि किसी भी ज़रूरत के चलते कोई बच्चा पीछे न छूटे।
जब छात्रा बनी शिक्षिका
इस पहल की असली ताक़त उन कहानियों में है जो यहां से निकली हैं।
राधा कुमारी, जो 2009 में इसी संस्था में बतौर छात्रा आई थीं, आज स्नातक की पढ़ाई पूरी कर इसी स्कूल में शिक्षक की भूमिका निभा रही हैं।
उनकी कहानी यह बताने के लिए काफी है कि सही समय पर मिला सहारा किसी भी ज़िंदगी की दिशा बदल सकता है।
पूजा कुमारी, जो कभी यहां नाम लिखना सीखने आई थीं, अब अपनी दो बेटियों—रानी और शिवानी—का नाम इसी स्कूल में लिखवा चुकी हैं। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक शिक्षा की लौ जलाए रखने की मिसाल है।
स्वावलंबन की ओर बेटियां
संस्था ने सिर्फ बच्चों की शिक्षा तक ही नहीं, बल्कि युवतियों के आत्मनिर्भर बनने के सफर में भी साथ निभाया है।
ग्रेजुएशन कर चुकी लड़कियों को निःशुल्क सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण और सिलाई मशीन दी जाती है, ताकि वे खुद का रोजगार शुरू कर सकें और आत्मनिर्भर बनें।
प्रशासन का समर्थन और सराहना
मेयर गणेश पासवान ने इस अवसर पर कहा,
“संस्था द्वारा किया जा रहा यह कार्य समाज के उन हिस्सों तक पहुंच रहा है, जिन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। नगर निगम इस पहल के साथ खड़ा है और हरसंभव सहयोग देगा।”
संस्था का संकल्प
संस्था की अध्यक्षा गोपा सिन्हा ने कहा,
“जब हमने इन बच्चों को गलियों और प्लेटफॉर्म पर भटकते देखा, तो समझ आया कि इनके जीवन में शिक्षा का अभाव नहीं, दिशा का अभाव है। हमने ठाना कि हम इन्हें सुरक्षा, शिक्षा और स्वाभिमान की राह पर ले जाएंगे।”
सामाजिक सहभागिता
इस अवसर पर समाजसेवी दीपक कुमार, संस्था के कर्मी राकेश रंजन मिश्रा, नरेश कुमार, बिंदुल पासवान, सुरेंद्र कुमार, रंजीत कुमार तथा इनरव्हील क्लब ऑफ बोधगया की प्रो. (डॉ.) वीणा पाठक, डॉ. अर्चना कुमारी, सरिता वर्मा, रीना प्रसाद, हर्षा सिन्हा और वीणा सिन्हा समेत कई गणमान्य अतिथि मौजूद रहे।
एक उम्मीद, एक बदलाव
गया रेलवे स्टेशन की पटरी के किनारे पलने वाले इन बच्चों के जीवन में अब सिर्फ ट्रेनें नहीं गुजरतीं, बल्कि शिक्षा, आत्मनिर्भरता और गरिमा की एक नई राह भी खुल चुकी है। ‘रेस्क्यू जंक्शन’ एक उदाहरण है कि जब समाज और संस्थाएं साथ मिलकर काम करें, तो कोई बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रह सकता।