महादलित परिवार न्याय के लिए दर-दर भटक रहा, मां की गुहार – “मेरे बेटे की हत्या की सीबीआई जांच हो”
गया। गया जिले के बुनियादगंज थाना क्षेत्र के शादीपुर गांव की एक मां तीन साल से दर-दर भटक रही है। उसकी आंखों के सामने उसके बेटे को नकाबपोश अपराधियों ने गोलियों से भून दिया। लेकिन आज तक पुलिस अपराधियों को पकड़ नहीं सकी। यह कहानी सिर्फ एक परिवार के ग़म की नहीं, बल्कि पुलिस की विफलता की भी है।
वह रात जिसने सबकुछ छीन लिया
2 सितंबर 2022 की रात लगभग 1:30 बजे। परिवार घर की छत पर सोया हुआ था। तभी तीन नकाबपोश अपराधी सीढ़ी चढ़कर ऊपर पहुंचे। मां और तीन बहनों के सामने उन्होंने 25 वर्षीय कुंदन कुमार के सीने में दो गोलियां दाग दीं। कुंदन तड़पते-तड़पते वहीं दम तोड़ दिया।परिवार ने जब अपराधियों को रोकने की कोशिश की, तो उन पर भी बंदूक तान दी गई। मां की आंखों के सामने उसका बेटा खत्म कर दिया गया और वह कुछ कर भी न सकी। यह दर्द आज तक उसके साथ है।
मां की फरियाद – “हत्यारों को पकड़ नहीं पा रही पुलिस”
कुंदन की मां सुगापत्ति देवी ने मगध प्रक्षेत्र के 2022 के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक को दिए आवेदन में लिखा है –
“मैं महादलित परिवार से हूं। मेरा बेटा बीएड की पढ़ाई कर रहा था। कोचिंग पढ़ाकर अपना खर्च खुद उठाता था। अपराधी मेरे सामने बेटे को मारकर भाग गए, लेकिन तीन साल बाद भी पुलिस उनके नाम-पते तक नहीं बता सकी। अनुसंधानकर्ता हर बार कहते हैं—पता लगाया जा रहा है। लेकिन असलियत यह है कि पुलिस निष्क्रिय है।” उन्होंने मांग की है कि कुंदन हत्याकांड की जांच सीबीआई से करवाई जाए, ताकि मोबाइल लोकेशन, फॉरेन्सिक जांच और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर अपराधियों की पहचान और गिरफ्तारी हो सके।
खाली हाथ रही पुलिस – सिर्फ थ्योरी बनी, न्याय नहीं
जांच के दौरान ननौक–नौधरिया मार्ग स्थित सीसीटीवी फुटेज में एक संदिग्ध उजली अपाचे बाइक दिखी थी। पुलिस ने टॉवर डंप और लोकेशन ट्रैकिंग की बातें कहीं। लेकिन तीन साल बाद भी नतीजा ‘सिफर’ रहा। पुलिस ने प्रेम प्रसंग जैसी थ्योरी गढ़कर मामले को कमजोर करने की कोशिश की, लेकिन असली कातिलों तक नहीं पहुंच पाई।
भाई का दर्द – “हर जगह गुहार लगाई, सिर्फ आश्वासन मिला”
कुंदन हत्याकांड के तीसरी बरसी पर आयोजित शोक सभा में उनके बड़े भाई डॉक्टर अरविंद कुमार ने मगध लाइव को बताया कि “हमने थाना से लेकर डीजीपी तक गुहार लगाई। दर्जनों बार चक्कर लगाए। हर जगह आश्वासन मिला, लेकिन कार्रवाई नहीं। मां तीन साल से हर दरवाज़े पर दस्तक दे रही है, लेकिन कातिल आज भी खुलेआम घूम रहे हैं।”
कुंदन एक होनहार शिक्षक और कलाकार था। एक महादलित परिवार के सपनों को गोलियों ने निगल लिया। लेकिन न्याय दिलाने वाली व्यवस्था तीन साल बाद भी हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
अब सवाल यह है – क्या बिहार पुलिस इतनी असहाय है कि एक मां को सीबीआई जांच की गुहार लगानी पड़े? क्या तीन साल बाद भी न्याय सिर्फ फाइलों में दबकर रह जाएगा? और क्या कातिल यूं ही खुलेआम घूमते रहेंगे?
कुंदन की मां की आंखें आज भी यही कह रही हैं – “मेरे बेटे के कातिलों को सजा दिलाओ। मुझे न्याय चाहिए।”