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राधानंद सिंह, मानस मर्मज्ञ, संरक्षक, गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन

वरीय संवाददाता देवब्रत मंडल

यह सर्वविदित है कि परमपावन पितृतीर्थ गया की संपूर्ण महत्ता “विष्णुपद” पर आधारित है।भगवान् विष्णु का यह पद पितरों को मुक्ति प्रदान करता है।पावन का अर्थ है जो स्वयं पवित्र है और परमपावन का अर्थ है जो स्वयं तो पवित्र है ही, अन्य जीवों की कल्मषता को प्रक्षालित कर उसका सर्वविध उद्धार कर देता है।यथा -विष्णुपद, फल्गु, गंगा आदि तीर्थ।

गया धाम के “विष्णुपद” का उल्लेख संकेतात्मक व्यंजना में महाभारत में किया गया है।महाभारत के वनपर्व के अंतर्गत तीर्थयात्रा पर्व में गया के उद्दन्त पहाड़ पर “सावित्री पद” का उल्लेख किया गया है-
उद्दन्तं च ततो गच्छेत् पर्वतं गीतनादितम्।।
सावित्र्यास्तु पदं तत्र दृश्यते भरतर्षभ।। वन• 84/93
अर्थात् भरतकुलभूषण! तदनंतर संगीत की ध्वनि से गूँजते हुए उदयगिरि पर जाय।वहाँ सावित्री का चरण चिह्न आज भी दिखाई देता है।

मानस और मिथक पर शोध करते हुए यह बोध हुआ कि वेद और पुराणादि के अधिकांश प्रतीकात्मक व्यंजना से पूर्ण हैं।इसके अभाव में ही आज हमारे शास्त्रों पर लोगों को संशय और भ्रम है।कथन सीधा सादा अभिधा में है, लेकिन उसकी लक्षणा और व्यंजना विशिष्ट है।इसका बोध अनिवार्य है, तभी उसके रहस्य का बोध होता है और हमें संशय और भ्रम के स्थान पर आनंद की प्राप्ति होती है।

यहाँ भी हमें यह जानना चाहिए कि गया के पूर्वी छोर पर अवस्थित होने के कारण इस पर्वत को उद्दन्त या उदयगिरि कहा गया है।वैदिक एवं पौराणिक साहित्य में विष्णु में सवितृ या सूर्य देव समाहित हैं।पुराणों में द्वादशादित्य की नामावली में अंतिम नाम “विष्णु” है।इनके नाम क्रमशः धातृ, मित्र, अर्यमन्, रुद्र, वरुण, सूर्य, भग, विवस्वान्, सविता, त्वष्टा और विष्णु मिलते हैं।(सूर्याड़्क कल्याण पृष्ठ 414)

अतः भगवान् विष्णु और सूर्य मूलतः एक ही तत्त्व हैं।स्वयं भीष्म ने महाभारत सभापर्व में कहा है – “विष्णुर्नारायणः सोमः सूर्यश्च सविता स्वयम्।” अर्थात् श्रीकृष्ण ही विष्णु, नारायण, सोम, सूर्य और सविता नाम वाले सुशोभित हुए। विष्णु सहस्रनाम के अंतर्गत भी कहा गया है – आदित्यो ज्योतिरादित्यः सहिष्णुर्गतिसत्तमः। 73
गीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने कहा है -आदित्यानामहं विष्णु:।अतः सूर्य, सवितृ और विष्णु अभिन्न हैं।अतएव गया स्थित सावित्री पद स्वाभाविक तौर पर “विष्णुपद” ही सिद्ध होता है।

पद्मपुराण, विष्णुपुराण, श्रीमद्भागवत , रामचरितमानस आदि ग्रंथों में भगवान् के तलवे में अंकित चरण चिह्नों के उल्लेख मिलते हैं। गयाधाम विष्णुपद में प्रतिदिन संध्याकालीन पूजा के समय उनके पद का शृंगार किया जाता है जिसमें उनके शंख,चक्र, कमल, अंकुश, ध्वज, वज्र, जौ, चंद्रमा आदि अंकित किये जाते हैं।ऐसे भक्तमाल में भगवान् श्रीराम के 22 चिह्नों के उल्लेख हैं।

विष्णुपद में अंकित चिह्न ही पितरों तथा अन्य जीवों के उद्धार करते हैं।मनोजय के लिए अंकुश, जड़ता को मिटाने के लिए वस्त्र चिह्न, पाप-पर्वत के विनाश के लिए वज्र, भक्ति रूपी नवनीधि जोड़ने के लिए कमल, सर्वविद्या, सर्वसिद्धि, सुमति, सुगति और सुख संपत्ति की प्राप्ति के लिए जव (जौ), कलि कुटिलता से निर्भयता प्राप्ति हेतु ध्वज, सभी संसारी कष्ट के शमन एवं भवसागर को गोखुर की तरह पार करने के लिए गोपद, माया का कपट, कुचाल और संपूर्ण बल को जीतने के लिए शंख, कामरूपी निशाचर के विनाश के लिए चक्र, सर्वविध मंगल और कल्याण के लिए स्वस्तिक, चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति के लिए जंबूफल, भक्ति रस के लिए अमृत कलश और कुंड, तीनों तापों के विनाश के लिए अर्धचंद्र, कामादि सर्प न डँसे इसके लिए अष्टकोण, षट्कोण और त्रिकोण यंत्र चिह्न, मन का चरणों में सतत स्वाभाविक प्रीति के लिए मीन और बिन्दु चिह्न, संसार सागर से पार करने के लिए ऊर्ध्वरेखा चिह्न, भक्तों का अहंकार और दुःख दूर करने के लिए धनुष चिह्न का ध्यान सतत करना चाहिए। भगवान् के पदकमल में पुरुष विशेष का चिह्न का तात्पर्य है कि शुद्ध, सरल और सत्य मनवाले को भगवान् अपने पदकमल में इसी पुरुष विशेष की तरह स्थान देते हैं।

एतदर्थ भगवान् विष्णुपद में अंकित विशेषताओं से यह स्पष्ट है कि गयाश्राद्ध के समय इन चिह्नों के प्रभाव से ही पितरों का उद्धार होता है तथा जो जन उपर्युक्त चिह्नों का हृदय मे सतत ध्यान करके उनके नामों का उच्चारण करता रहता है – वह उन्हीं चरणों में शरण पाता है-
सूधो मन सूधी बैन सूधी करतूती सब ऐसो जन होय मेरो, याही के ज्यों राखिये।
जो पै बुधिवन्त रसवन्त रूप संपति में, करि हिये ध्यान हरिनाम मुख से भाषिये।। (भक्तमाल छप्पय 6, कवित्त19)

यही है “गया-श्राद्ध का विष्णुपदी माहात्मय”, जिनके रहस्य को हमें समझना और जानना चाहिए। (क्रमशः)
डॉ• राधा नंद सिंह
संरक्षक,
मारुति सत्संग मंडल, पुणे
9/10/2023

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Last Update: October 9, 2023

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