मुख्य संपादक देवब्रत मंडल


पूर्व मध्य रेल के हावड़ा-नई दिल्ली ग्रैंडकॉर्ड लाइन पर डीडीयू मंडल अंतर्गत गया-डीडीयू रेलखंड के रफीगंज में धावा नदी रेल पुल पर गत 9 सितंबर 2002 को कोलकाता से चलकर नई दिल्ली जाने वाली 12301 (तत्कालीन 2301 अप) कोलकाता-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी।जिसमें 138 रेल यात्रियों की मौत हुई थी तथा 250 से अधिक रेल यात्री घायल हुए थे। तबाही का वैसा मंजर मगध प्रमंडल के व विशेषकर स्थानीय लोग पहले कभी नही देखा था। इस भयानक रेल हादसे को लेकर प्रत्येक वर्ष 2002 से 9 सितंबर को रात्रि 10.45 बजे रफीगंज रेलवे के द्वारा एवं रफीगंज(औरंगाबाद जिला) के समाजसेवियों द्वारा धावा नदी रेल ब्रिज पर पटरी पूजन का आयोजन किया जाता रहा है ताकि घटना की पुनरावृत्ति न हो।
इस काली रात की घटना की सूचना जैसे ही मुझ तक( उस वक्त दैनिक जागरण के संवाददाता के तौर पर गया कार्यालय में कार्यरत था) आई तो सबसे पहले हमने अपने गया कार्यालय के तत्कालीन क्राइम रिपोर्टर श्री पंकज कुमार और ब्यूरो श्री कमलनयन को टेलीफोन के माध्यम से दी। उस वक्त मेरे घर में मोटोरोला कंपनी का मोबाइल(हैंडसेट) हुआ करता था।
तत्काल मुझे कहा गया कि जो जानकारी आप तक आई है एक खबर बनाकर भेज दें। उसके बाद मुझे गया जंक्शन जाने का आदेश हुआ। घटना चूकी औरंगाबाद जिले के रफीगंज की थी लेकिन फिर भी मुझे आदेशित किया गया। रात को पुनः कार्यालय खोला गया। उस समय फैक्स के माध्यम से खबरें पटना भेजी जाती थी। मैंने गया कार्यालय में बैठे सर को फोन पर खबर लिखवा दी थी, जिसे पटना फैक्स किया गया।
इसके बाद मैं दुर्घटना राहत ट्रेन से अपना कैमरा लेकर रफीगंज स्टेशन के लिए और कुछ पत्रकार के साथ रवाना हो गया था। दुर्घटना स्थल से पहले ही ट्रेन(एआरटी) रुक गई थी लेकिन मैं वहां से पैदल ही रेलपथ के सहारे निकल पड़ा था। जो दृश्य उस अंधेरी रात की था, वो भयावह था। क्रंदन रुदन की चीत्कार सुन देख स्तब्ध था लेकिन खबरिया(पत्रकार) होने के नाते हम पल पल की सूचना फोन से कार्यालय को भेजते रहे। देर रात रफीगंज स्टेशन पर लौटे। इसके बाद गया।
आज इस घटना के 21 साल हो चुके हैं और हमें आज भी स्मरण है कि एक पत्रकार को कितना सबकुछ सहना पड़ता है। उस वक्त दैनिक जागरण के पटना संस्करण के दो साल ही हुए थे। उस वक्त मुझे दैनिक जागरण के द्वारा मानदेय के तौर पर मात्र ₹ 500 मासिक मिला करता था।
इस घटना की खबर को सभी अखबारों के पहले पन्ने पर जगह दी गई थी।
इसके बाद से हर साल 09 सितंबर को एक विशेष खबर के लिए मैं रफीगंज जाता रहा और रिपोर्टिंग करते रहे। आज 21 साल बाद भी मुझे यह घटना झकझोर देती है। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ऐसी दुर्घटना कहीं भी नहीं हो।