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वरीय संवाददाता देवब्रत मंडल

गयाजी में पितृपक्ष मेला 2023 के दसवें दिन शनिवार को एक सफाईकर्मी की मौत डूबकर हो गई। डूब चुके कर्मी की जान बचाने के लिए एसडीआरएफ की टीम ने भरसक प्रयास किया लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। यहां सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है कि जिस कर्मी की मौत की वजह डूबना है तो क्या उस कर्मी को तैरना आता भी था या नहीं? मौत अप्राकृतिक हुई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने का इंतजार है।

किसके आदेश पर मुन्ना की ड्यूटी तालाब के पास लगाई गई थी

जिस एजेंसी का मुन्ना कर्मचारी(मजदूर) था। उसे तालाब में सफाई करने के लिए भेजा किसने? स्वाभाविक है कि इस कार्य को करने के लिए निजी एजेंसी का कोई दूसरा कर्मचारी ही होगा जिसने उसे वैतरणी तालाब में सफाई के लिए भेज दिया। अब यहां दूसरा सवाल खड़ा हो जाता है कि साफ सफाई करवाने के लिए एजेंसी तय करने के बाद क्या एजेंसी से इस बात का सर्टिफिकेट लिया गया है कि उनके जितने भी कर्मचारी इस कार्य में लगाए गए हैं उनमें कौन कौन तैरना जानता है। यदि नहीं लिया गया या उसने नहीं दिया तो किस आधार पर सफ़ाई कर्मचारी मुन्ना मांझी को तालाब के पास काम में जाने दिया। मुन्ना मांझी पटना जिले क़े मसौढ़ी का रहनेवाला था। जिसे डीईएसपीएल कंपनी ने इस कार्य में लगाया। इसकी मौत के लिए कौन दोषी ठहराया जाएगा यह तो जब इसकी अच्छे तरीके से जांच की जाएगी।

सेफ्टी किट प्रदान नहीं किए जाने पर भी उठ रहे सवाल

एक सवाल यह भी उठ रहा है कि मुन्ना मांझी को जब काम में लगाया गया था तो उसे एजेंसी यानी संवेदक द्वारा सेफ्टी किट क्यों नहीं दिया गया। जबकि देखा जा रहा है कि मेला क्षेत्र में कई सफाईकर्मी को देखा गया है कि जिन कर्मियों को इस कंपनी के द्वारा काम पर लगाया गया है वे सेफ्टी किट के बगैर काम करते हैं। न तो उन्हें सेफ्टी किट जैसे हैंड ग्लब्स, जूता, तालाब में जाने वाले कर्मी को दिए जाने वाले प्लास्टिक किट, टोपी आदि प्रदान किया गया है। जो नियमों और निविदा के शर्तो के विपरीत नजर आता है। इसके अलावा देखा जाए तो नगर निगम के साफ सफाई कार्य के नोडल अधिकारी के रूप में अभियंता शैलेन्द्र कुमार सिन्हा कार्य संभाल रहे हैं तो इनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि इन सभी चीजों को वे देखते कि सेफ्टी रूल को संवेदक फॉलो कर रहे हैं या नहीं। मेला क्षेत्र में निरीक्षण करने वाले सक्षम प्राधिकार भी इन चीजों को नहीं देख रहे हैं। इन सभी का कर्तव्य व दायित्व बनता है कि जिस संवेदक द्वारा कार्य लिया जा रहा है वो निविदा की शर्तों को पूरा कर भी रहा है या नहीं। उसमें कौन कौन तैरना जानते हैं। इसकी लिस्ट संवेदक को देना चाहिए। इसके बाद ही तालाब या नदी में या इसके आसपास साफ सफाई के कार्य में लगवाने की जरूरत है। शायद ऐसा नहीं किया गया। यदि ऐसा किया जाता तो मुन्ना मांझी का पैर फिसल जाने के बाद उसकी मौत डूबने से नहीं होती।

कौन बताएगा कि मुन्ना मांझी को तैरना आता था या नहीं

मृतक सफ़ाई कर्मी मुन्ना मांझी को तैरना आता था या नहीं के सवाल पर गया नगर निगम की आयुक्त भाप्रसे अभिलाषा शर्मा का कहना है कि उन्हें पता नहीं कि उसे तैरना आता था या नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि सभी को ड्रेस(वर्दी) दिया गया है लेकिन मृतक ड्रेस(वर्दी)में नहीं था। ठीक यही बात नगर निगम के साफ सफाई के नोडल पदाधिकारी अभियंता शैलेन्द्र कुमार सिन्हा का भी कहना है। इनका कहना है कि उन्हें पता नहीं कि मुन्ना मांझी को तैरना आता था या नहीं। अब जबकि मुन्ना मांझी अब जीवित नहीं है तो यह कौन बताएगा कि उसे तैरना आता था भी या नहीं। अब मृतक के परिजन ही बता सकते हैं कि मुन्ना मांझी को तैरना आता था या नहीं या फिर उस कंपनी के अधिकारी को ही प्रमाणिक दस्तावेज के साथ बताना होगा कि मुन्ना मांझी को तैरना आता था या नहीं। यदि इस घटना की निष्पक्षता से जांच की जाती है तो स्पष्ट हो सकता है कि मुन्ना मांझी की मौत के लिए कौन कौन जिम्मेदार है। हालांकि निगम और जिला प्रशासन के तरफ से इस हादसे के बाद जारी विज्ञप्ति में कहा गया है तालाब में तार में फंस जाने के कारण काफी देर हो गई। वहीं पुलिस पदाधिकारी भी कह रहे हैं कि तार में फंस जाने के कारण गहरे पानी में देर तक मुन्ना मांझी रह गया और दम घुटने से उसकी मौत हो गई।

अधिवक्ता ने डिप्टी लेबर कमिश्नर से लेकर नगर आयुक्त तक पहुंचाई शिकायत

अधिवक्ता मदन कुमार तिवारी ने बताया कि उन्होंने डिप्टी लेबर कमिश्नर और नगर निगम की आयुक्त को एक पत्र लिखकर कई शिकायत दर्ज कराई है। इनका कहना है कि जिस कम्पनी को सफाई का ठेका मिला है ये उसके कर्मचारी नही है। इन्हें किसी ठीकेदार द्वारा लाया गया है ये झूठ बोलकर की मकान निर्माण का काम करना है। 300 रुपया प्रतिदिन देने का वादा कर के। स्वभाविक है कि इनका EPF नहीं कटता होगा। यह श्रमिको का शोषण नही है क्या ? कोई एग्रीमेंट तो नगर निगम के साथ इस कम्पनी का हुआ होगा ? उसमे क्या प्रावधान है ? यह वास्तव में आदिवासी के उत्पीड़न का मामला है, नगर निगम एग्रीमेंट के अनुसार और न्यूनतम मजदूरी के अनुसार भुगतान सुनिश्चित करे, कम्पनी द्वारा लाये गए मजदूरो का संपूर्ण विवरण दर्ज करने की बात कही गई है।

1 सभी मजदुरो का बैंक एकाउंट जिस कम्पनी को ठेका मिला है उसके द्वारा खुला है या नही।
2.मजदूरों का EPF account खुला है या नही। न्यूनतम मजदूरी की दर से भुगतान को सुनिश्चित किया जाय।

  1. नगर निगम के द्वारा कम्पनी से जो अग्रीमेंट हुआ है उसकी शर्तों के अनुसार मजदुरो को भुगतना और अन्य सुविधाएं सुनिश्चित की जाय।
  2. सभी मजदूरों का विवरण दर्ज किया जाय।
    यह नगर निगम की जिम्मेवारी बनती है। उन्होंने कहा कि प्रथमदृष्टया में यह श्रमिको के शोषण का मामला लगता है। इसपर कृप्या ध्यान दें, पितृपक्ष मेला की सफलता मजदूरों के साथ अत्याचार की कीमत पर आपके जैसा अच्छा और ईमानदार अधिकारी के रहते अगर होती है तो यह बहुत दुखद है
  3. अधिवक्ता मदन कुमार तिवारी ने बताया कि उन्होंने डीईएसपीएल आउटसोर्सिंग कंपनी के खिलाफ शिकायत की थी कि आपके विभाग द्वारा श्रम कानूनों और सुरक्षा उपायों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। जिसके परिणामस्वरूप एक श्रमिक की जान चली गई। उन्होंने आईपीसी की धारा 304 के तहत गैर इरादतन हत्या के लिए डीईएसपीएल और उसके निदेशकों के खिलाफ एफ.आई.आर. की मांग करते हुए कहा कि क्योंकि डीईएसपीएल ने मृतक को उचित सुरक्षा उपायों के बिना तालाब की सफाई के काम में लगा दिया था, यह जानते हुए भी कि डीईएसपीएल के इस तरह के कृत्य से श्रमिक की मृत्यु हो सकती है। इन्होंने बताया कि डीएम और नगर आयुक्त को इस संबंध में पत्र उनके द्वारा लिखा गया है।

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Last Update: October 8, 2023