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देवब्रत मंडल, गया

गया संसदीय क्षेत्र में चुनाव संपन्न हो जाने के बाद बात अब केवल यही हो रही है कि आखिर जीत कौन रहा है। गया के मतदाताओं में उतनी ही लालसा है, जितना कि प्रत्याशियों में। इस बीच एक बात जो निकल कर आई है वो आश्चर्यजनक है। पिछली बार की तुलना में इस बार मात्र 191 वोट ही अधिक पड़े हैं। याद होगा कि पिछली बार 2019 के चुनाव में जदयू-भाजपा की जोड़ी ने राजद-हम की जोड़ी को 1,50,1,521 शिकस्त दी थी। विजय कुमार मांझी की जीत हुई थी। जीतनराम मांझी की हार।

हार का सबसे बड़ा राजनीतिक कारण ‘मोदी लहर’

2019 में जीतनराम मांझी की हार का प्रमुख राजनीतिक कारण ‘मोदी लहर’ था। विजय कुमार मांझी का राजनीतिक बैकग्राउंड अपना कुछ नहीं था। था तो इनकी दिवंगत मां पूर्व सांसद स्व. भगवती देवी। भगवती देवी को राजद ने राजनीतिक प्रयोग किया और सफल हुआ था। ठीक वही प्रयोग भाजपा ने किया और विजय मांझी सांसद बन गए।

पिछले और इस बार कुल मतों में कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ

2019 को संपन्न लोकसभा चुनाव में गया(सु.) के लिए डाले गए कुल मत 9,57,654 थे। मतों का प्रतिशत 56.18% था। इस हिसाब से देखा जाए तो इस बार 2024 के चुनाव में कुल मतदान का प्रतिशत 52.7% है। इस हिसाब से कुल मत 9,57,463 डाले गए। 2019 और 2024 के चुनाव में पड़े वोट के हिसाब से मात्र 191 वोट ही अधिक पड़े। भले ही मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई लेकिन जो मत पड़े हैं। उस हिसाब से 191 का ही अंतर है।

49 प्रतिशत वोट पाकर विजय कुमार मांझी चुनाव जीत गए थे

भाजपा-जदयू (एनडीए) के उम्मीदवार विजय कुमार मांझी 49% वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। भाजपा+जदयू के विजय कुमार को 4,67,007 वोट मिले थे। जबकि राजद+हम के जीतनराम मांझी को 3,14,581 वोट मिले थे।

2014 में 40.29 प्रतिशत वोट पाकर हरि मांझी जीत गए थे

थोड़ा और पीछे चलते हैं। 2014 के चुनाव में भाजपा के हरि मांझी ने राजद के उम्मीदवार रामजी मांझी को 1,15,504 वोट से हराया था। हरि मांझी को 3,26,230 वोट मिले थे जो कुल पड़े मतों का 40.29% था। राजद के रामजी मांझी को 2,10,726 वोट मिले थे। इनके हार का कारण जदयू के उम्मीदवार जीतनराम मांझी बन गए थे। जिन्हें 1,31,828 वोट मिला था।

कांटे की टक्कर

अबकी बार किसकी बारी

19 अप्रैल को 18 वीं लोकसभा के लिए गया(सु.) सीट के लिए प्रथम चरण में वोट डाले गए। मतदान का प्रतिशत 52.7% रहा। 18 लाख 16 हजार 815 मतदाताओं में से 9,57,463 मतदाताओं ने इस बार मताधिकार का प्रयोग किया। 2019 और 2024 में पड़े कुल मतों का तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि केवल 191 वोट का अंतर है।

49 प्रतिशत मत हासिल करने वाले की हो सकती है जीत

2019 के चुनाव में वैसे 13 प्रत्याशी थे। लेकिन मुकाबला तत्कालीन एनडीए बनाम तत्कालीन महागठबंधन था। महागठबंधन में हम और राजद, कांग्रेस, वामदल शामिल था। लेकिन इस बार हम+जदयू+भाजपा,लोजपा व अन्य साथ है। वहीं इस बार राजद+कांग्रेस+वामदल व अन्य साथ है। 2019 की तुलना में 2024 में भले ही मतों के प्रतिशत में करीब 4 प्रतिशत की कमी आई है लेकिन कुल वोट आसपास ही हैं। ऐसे में जो उम्मीदवार 49% यानी करीब 4,69,157 वोट हासिल कर लेता है उसकी जीत की संभावना बनती है।

नोटा और अन्य वोट भी पड़े ही होंगे,जो मायने रखता है

इस बार के चुनाव में 14 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। जिसमें बसपा एक और प्रमुख दल है। जो हर बार कुछ अच्छा ही वोट लेकर आती रही है। 2014 और 2019 के चुनाव परिणाम देखने से पता चलता है 2019 में 3.14% मत NOTA को पड़े जो करीब 30 हजार वोट थे। जबकि 2014 के चुनाव NOTA पर 19,030 मतदाताओं ने ईवीएम पर बटन दबाया था। इस बार यह कितना है या अन्य 12 प्रत्याशियों को कितने कितने वोट पड़े हैं, ये तो 04 जून को ही क्लियर होगा।