न्यूज शेयर करें

हरिशंकर परसाई जन्मशती वर्ष 2023-24 के उपलक्ष्य में हादी हाशमी विद्यालय के प्रांगण में संगोष्ठी एवं रचनापाठ

🖋️ देवब्रत मंडल

‘दिवस कमज़ोर का मनाया जाता है , जैसे महिला दिवस , शिक्षक दिवस , मज़दूर दिवस। कभी थानेदार दिवस नहीं मनाया जाता। जब शर्म की बात गर्व की हो बात जाए तब समझो कि जनतंत्र बढ़िया चल रहा है’ एक बार कचहरी चढ़ जाने के बाद सबसे बड़ा काम है अपने ही वकील से अपनी रक्षा करना। ऐसे तीखे व्यंग्य हरिशंकर परसाई की रचनाओं में मिलते हैं जिन्होंने व्यंग्य को सहित्य की एक विधा के रूप में स्थापित किया। जन्मशताब्दी वर्ष 2023-24 पर प्रगतिशील लेखक संघ गया इकाई के तत्वावधान में हादी हाशमी हाई स्कूल गया में सोमवार को ‘परसाई की व्यंग्य दृष्टि : आयाम एवं शक्ति’ विषयक वैचारिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

कृष्ण कुमार की अध्यक्षता में आयोजित परिचर्चा का बीज वक्तव्य देते हुए परमाणु कुमार ने कहा कि परसाई का समस्त लेखन समाज की विसंगतियों को तोड़ने की कोशिश थी। ठिठुरता लोकतंत्र, प्रेमचंद के फटे जूते, भूत के पाँव पीछे, वैष्णव की फिसलन, पगडंडियों का जमाना, सदाचार का तकाजा जैसी रचनाओं के व्यंग्यकार परसाई आज़ादी के बाद की राजनीति , सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था की विडंबनाओं को उभारते हैं ताकि बदलाव के रास्ते खुल सकें। विषय पर मुख्य वक्तव्य देते हुए प्रो. अली इमाम ख़ान साहब ने कहा कि समान की बदरूपता जो असमानता और शोषण से उपजती है को परसाई ने केंद्र में रख कर रचनाएँ की। उनके व्यंग्य का फ़लक बहुत बड़ा है जो तमाम तरह की सत्ताओं को चुनौती देते प्रतीत होते हैं । उनमें इतिहास बोध तो था ही, उनके सामाजिक सरोकार काफी गहरे थे। 80 और 90 के दशक में बुद्धिजीवियों और युवाओं के बीच उनका क्रेज़ था जो सुंदर समाज गढ़ना चाहते थे। युवा रचनाकार प्रत्यूष चंद्र मिश्रा ने उनकी रचनाओं के आयाम और शक्ति को चिह्नित करते हुए कहा कि उनका रचना-संसार सामाजिक ताने बाने से समृद्ध है। अपने व्यंग्य से उन्होंने समाज को शिक्षित किया। आज का वैष्णव जब फिसल ही नहीं रहा बल्कि हिंसक होता जा रहा है तब परसाई शिद्दत से याद आ रहे हैं।

उपसचिव डॉ. शांडिल्य सौरभ ने कहा कि परसाई से हमें मुखर प्रतिरोध की त्वरा प्राप्त होती है। किसान आंदोलन या छात्र आंदोलन लेखन का विषय क्यों नहीं बन पा रहा है, सोचनीय है जबकि जनसोकारी आंदोलन ही समाज को सशक्त बनाता है। दरअसल कलावादी शक्तियों ने नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने बाज़ार के ताक़त की पहचान करने की बात ज़ोर देकर कही। कवि राजीव रंजन ने कहा कि परसाई की प्रासंगिकता आज और बढ़ गयी है। आज व्यवस्था की खाल बहुत मोटी है जिसमें व्यंव्य के नश्तर बहुत मुश्किल से चुभते हैं। उपाध्यक्ष अशोक सारेंजवी ने बात रखी कि व्यंग्य में इतनी शक्ति होती है कि मनुष्य को निर्णायक दौर में पहुंचाती है। अमित चरण पहाड़ी ने कहा कि जीवन की समस्याओं को सुलझाने में परसाई के व्यंग्य को सार्थक पाते हैं। संवेदनाओं को जीवित रख कर ही हम आज की विद्रूपताओं को समझ सकते हैं और लिख सकते हैं।

अध्यक्षीय वक्तव्य में कृष्ण कुमार ने कहा कि परसाई का लेखन साहित्य में जवजागरण है। परसाई की दृष्टि में पैर छूना लात मारना है। इसको समझने की आवश्यकता है। उनका साहित्य मोहभंग का साहित्य है जो सत्ता के सामने नए रूप में खड़ा होता है। वैचारिक परिचर्चा को हिंदी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर पूर्व विधायक डॉ. कृष्णनंदन यादव, वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता मसऊद मंजर, वरिष्ठ कवि डॉ. रामकृष्ण, मुरारी शर्मा(जसम संरक्षक , गया) इत्यादि ने भी सम्बोधित किया। दूसरे सत्र में हिंदी-उर्दू-मगही के कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। इनमें डॉ. रामकृष्ण , संजय सहियावी , फ़िरदौस गयावी , एम. ए. फ़ातमी , नदीम जाफरी , सुमंत , गजेंद्रलाल अधीर , नौशाद नादां , उदय सिंह , अशोक सारेंजवी , अरुण हरलीवाल , खालिद हुसैन आसी , एहसान ताबिश डॉ. सुल्तान अहमद , संतोष क्रांति , सुमन विश्वकर्मा , नंदकिशोर सिंह , अफसर जमाल अफसर , प्रत्युष चंद्र मिश्रा , महताब आलम महताब सहित दर्जनों के नाम शामिल हैं। समस्त कार्यक्रम का संचालन उपाध्यक्ष अरुण हरलीवाल ने तथा धन्यवाद ज्ञापन उपसचिव सुशील शर्मा ने किया ।

Categorized in:

Bihar, Gaya, MAGADH LIVE NEWS,

Last Update: December 25, 2023