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देवब्रत मंडल


बच्चों के साथ गया शहर के पुराने संस्कृति कर्मी ने भी हिस्सा लिया। हिंदी रंगमंच की स्थापना में काशी नरेश ईश्वरी नारायण सिंह ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका। पूरे भारत में 3 अप्रैल को प्रतिवर्ष हिंदी रंगमंच मनाया जाता है। इस बार किलकारी बिहार बाल भवन में नाटक विधा के बच्चों ने हिंदी रंगमंच दिवस का आयोजन किया। किलकारी के बच्चों ने इसका अवसर पर कविता पाठ, एकल तबला वादन, विदेसिया नाटक के गीतों की सांगीतिक प्रस्तुति एवं उदास मत हो चिन्नी नाटक का प्रदर्शन किया। हिंदी रंगमंच दिवस के अवसर पर बच्चों को संबोधित करते हुए किलकारी के प्रमंडल कार्यक्रम समन्वयक व बिहार रंगमंच के जाने-माने नाट्य निदेशक राजीव रंजन श्रीवास्तव ने बताया कि हिंदी रंगमंच की जड़े रामलीला रासलीला से आरंभ होती है। मूलत हमारे हिंदी रंगमंच पर संस्कृत नाटकों का प्रभाव है। आज भी नाट्य मंचन की पूर्व मंच पूजा यानी जर्जर स्थापना का कार्य कई नाटकों में होता है।

भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी नाटक के पुरोधा है प्रतिवर्ष पूरे देश में 3 अप्रैल को हिंदी रंगमंच दिवस इसलिए मनाया जाता है कि 1868 में 3 अप्रैल की शाम बनारस में पहली बार हिंदी नाटक जानकी मंगल का मंचन हुआ। शीतला प्रसाद त्रिपाठी लिखित इस नाटक के बारे में जून 1967 में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने शुक्ला में इसके मंचन को प्रमाणिक तौर पर पोस्ट किया की हिंदी साहित्य के इतिहास में पहली बार इस नाटक का मंचन हुआ था,वह था जानकी मंगल और इसी आधार पर शरद नागर ने हिंदी रंगमंच दिवस की घोषणा 3 अप्रैल को की थी कहा जाता है इस नाटक में 18 वर्षीय युवा भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लक्ष्मण की भूमिका निभाई थी। हालांकि कुछ लोग 1850 में लखनऊ में इंद्रसभा, दिल्ली में किस्सा राधा कन्हैया, मुंबई में गोपीचंदो पखायान, एवं नेपाल में विधा – विलास को मानते हैं।
सेंट्रल यूनिवर्सिटी आफ झारखंड से नाटक विधा में स्नातकोत्तर श्री मनीष कुमार जो किलकारी में नाट्य विधा के प्रशिक्षक हैं उन्होंने बच्चों से रंगमंच के माध्यम से स्वयं को सशक्त बनाने हरफनमौला बनाने पर जोर दिया ।
उक्त अवसर पर किलकारी के गुलशन, सुमित,खुशी,निशि गुड़िया, अपर्णा, अभिषेक बच्चों ने भाग लिया । उक्त कार्यक्रम में नृत्य विधा के प्रशिक्षक गौतम कुमार गोलू, शहर के प्रतिष्ठित कला प्रेमी राजेश्वर सिंह,वरिष्ठ छायाकार रुपक सिन्हा ,रजनीश कुमार झुन्ना ,प्रिंसी डायर ,बिपिन बिहारी, पप्पू तरुण,मनीष कुमार मिश्रा आदि उपस्थित रहे।
इस अवसर पर गया के कला सांस्कृति को आम-जन के बीच पुनः लाने का संकल्प लिया गया। कार्यक्रम में बच्चों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए प्रमंडल कार्यक्रम समन्वयक ने बच्चों को अधिक से अधिक रंगमंच से जुड़ने की बात कही।

Last Update: April 5, 2024

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