✍️अंकुर रंजन
चाँद चौरा, गया बिहार
गया शहर विधानसभा क्षेत्र बिहार की राजनीति का अहम केंद्र माना जाता है। वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, यहाँ की सियासत में हलचल तेज हो गई है। एक ओर जन सुराज, प्लूरल्स पार्टी और चिराग पासवान की पार्टी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने संकेत दिया है कि अगर उन्हें मनमाफिक सीटें नहीं मिलीं तो उनकी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। परंतु गया शहर विधानसभा क्षेत्र से महागठबंधन एवं एनडीए को उम्मीदवारी तय करने मे काफी मशक्कत करने की उम्मीद है। एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी से डॉ प्रेम कुमार की उम्मीदवारी 100% तय है वहीं शहर के एक प्रतिष्ठित व्यवसाई भी शहर से टिकट हासिल करने की पूरी उम्मीद में हैं। वहीं काँग्रेस से गया शहर की उम्मीदवारी अभी भी असमंजस में है क्यूंकी शहर के काँग्रेस के कई नए नवेले नेता भी इस चुनाव में अपनी उम्मीदवारी तय मान रहे हैं।
वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कॉंग्रेस के उम्मीदवार डॉ मोहन श्रीवास्तव 11898 मतों से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार डॉ प्रेम कुमार से पराजित हुए थे मगर इस परिणाम की तह तक जाएंगे तो आप पाएंगे की वर्ष 1985 से लेकर 2020 तक के गया शहर में जीतने भी काँग्रेस के उम्मीदवार ने चुनाव लड़ा उसमे सबसे अधिक वोट काँग्रेस को वर्ष 2020 के चुनाव में इसके उम्मीदवार डॉ मोहन श्रीवास्तव को ही मिले थे।
वर्ष 1985 में गया शहर से काँग्रेस के उम्मीदवार स्वर्गीय जय कुमार पालित की जीत हुई थी जिसमे उन्होंने 34450 वोट प्राप्त हुए थे। वहीं 1990 के काँग्रेस उम्मीदवार को 15675, 1995 में 23076, वर्ष 2000 में 4383 (इस वर्ष जय कुमार पालित काँग्रेस छोड़ कर आरजेडी की सीट से चुनाव लड़े थे), 2005 में 5408 एवं 23208 मत (वर्ष 2005 में बिहार में दो बार चुनाव हुए थे), 2010 में 7638 मत और 2015 में 44102 ।
वर्ष 2020 का गया शहर का विधानसभा का चुनाव सच में बेहद खास था। खास इसलिए नहीं की इस वर्ष काँग्रेस में अपने 30 वर्ष के रिकार्ड को तोडा था, खास इसलिए भी नहीं की इस वर्ष भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को कड़ी टक्कर मिली थी क्यूंकी पिछले 20 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार डॉ प्रेम कुमार के जीत का अंतर 10 20 हजार वोटों से भी अधिक रहा था। वर्ष 2020 के गया शहर विधानसभा का चुनाव इसलिए खास था क्यूंकी चुनाव के नतीजे में NOTA भारतीय जनता पार्टी एवं काँग्रेस के बाद तीसरे क्रमांक पर था। 2020 के विधानसभा चुनाव में काँग्रेस के उम्मीदवार डॉ मोहन श्रीवास्तव की भले ही हार हो गई थी मगर कॉंग्रेस पार्टी से 55034 वोट पाकर उन्होंने गया शहर में काँग्रेस पार्टी की छाप लोगों के दिलों दिमाग पर छोड़ दिया। 2020 का चुनाव गया शहर के लिए खास इसलिए भी था क्यूंकी गया शहर की जनता को पिछले 8 बार से विजयी होते आ रहे उम्मीदवार डॉ प्रेम कुमार का विकल्प नजर आने लगा था।
डॉ प्रेम कुमार, जो वर्ष 1990 में कूल वैध मतों का केवल 29 प्रतिशत मत पाकर सीपीआई के उम्मीदवार शकील अहमद खान को हराकर पहली बार गया शहर के विधायक बने और ये जीत का सिलसिला वर्ष 2020 तक चलता रहा। 1995 में CPI के मसूद मंजर, वर्ष 2000 में पुनः मसूद मंजर को महज 4000 वोटों से हराया, 2005 जब फ़रवरी के चुनाव हुआ उसमे इन्होंने फिर से मसूद मंजर को चुनावी शिकस्त दी मगर किसी भी पार्टी का पूर्ण बहुमत नहीं आने के कारण अक्टूबर महीने में बिहार में फिर से चुनाव होते हैं और बिहार से राष्ट्रीय जनता दल के विरोध में एनडीए गठबंधन के तौर पर डॉ प्रेम कुमार फिर से गया शहर के भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार बनाए जाते हैं।
इस बार वाले चुनाव में इनका मुकाबला काँग्रेस के उम्मीदवार संजय सहाय से होता है। श्री संजय सहाय राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखने वाले उम्मीदवार थे जिनकी माताजी बिहार की गृह मंत्री रह चूकी थीं एवं पिताजी पूर्व राज्यसभा सांसद थे। स्वर्गीय सुशीला सहाय 1977 में पहली बार जनता पार्टी से चुनाव लड़कर काँग्रेस के उम्मीदवार स्वर्गीय युगल किशोर प्रसाद को हराकर गया शहर की विधायक बनीं थीं। चूंकि 1980 में 5 वर्ष के पहले ही चुनाव हुए थे इसलिए 1980 में पुनः चुनाव हुए और इन्हे जय कुमार पालित ने शिकस्त दी।
2005 के चुनाव में काँग्रेस ने अपना मजबूत उम्मीदवार तय तो कर लिया था मगर एनडीए की आंधी में सारी की सारी ताकत फीकी पद गई। डॉ प्रेम कुमार फिर से विजेता घोषित होते हैं और 48099 वोट पाकर 24890 मतों के अंतर से संजय सहाय को करारी शिकस्त देते हैं। इस बार भी काँग्रेस को केवल 23208 मत ही मिले थे।
वर्ष 2010 का चुनाव और इस बार 2009 में ही केंद्र में यूपीए की सरकार बनी थी। 2010 के चुनाव फिर नवंबर महीने में आयोजित किए गए थे और इस बार फिर से एनडीए के उम्मीदवार डॉ प्रेम कुमार ही थे और उनके सामने थे काँग्रेस के उम्मीदवार डॉ मोहन श्रीवास्तव और सीपीआई के उम्मीदवार जलालुद्दीन अंसारी। 2009 की यूपीए गठबंधन की आंधी होने के बावजूद डॉ प्रेम कुमार 55618 मत प्राप्त कर विजेता घोषित होते हैं। इस बार उन्होंने सीपीआई के उम्मीदवार को लगभग 27000 वोटों से करारी शिकस्त दी थी। तीसरे नंबर पर काँग्रेस के उम्मीदवार डॉ मोहन श्रीवास्तव थे जिन्होंने 7664 वोट प्राप्त किया था।
यहाँ एक बात गौर करने वाली जरूर है की जैसे हर 5 वर्षों में डॉ प्रेम कुमार अपनी जीत की सीढ़ी चढ़ते गए वैसे वैसे उनके प्राप्त वोटों की संख्या भी बढ़ती गई। आप देखेंगे की उनकी पहली जीत 1990 में उन्हे 27816 मत प्राप्त हुए थे वो वर्ष 2010 में जाकर 55618 तक पहुँच चुका था। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे सामाजिक जागरूकता, अधिक युवाओं का होना। 2010 के चुनाव के परिणाम ने गया शहर की जनता को सोचने पर मजबूर कर दिया था की क्या गया शहर के लिए भारतीय जनता पार्टी की एक मात्र विकल्प है या इसका कोई तोड़ आने वाले दिनों में निकल कर आएगा?
सवाल की गहराई अभी खत्म भी नहीं हुई थी की वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी की केंद्र में सरकार बनती है और एनडीए की 180 की रफ्तार से चलने वाली आंधी पूरे भारतवर्ष के लोगों के मन से काँग्रेस पार्टी एवं अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व मिटाने का भरसक प्रयास करने में सफल साबित होती है। बिहार में वर्ष 2015 में विधानसभा चुनाव होते हैं और इस बार जैसा की सर्वविदित था भारतीय जनता पार्टी से डॉ प्रेम कुमार पुनः उम्मीदवार बनते हैं और इनका सामना काँग्रेस के उम्मीदवार प्रिय रंजन उर्फ डिम्पल (जो की गया शहर के पूर्व विधायक स्वर्गीय युगल किशोर प्रसाद के सुपुत्र थे) एवं वर्तमान गया जिला JDU के अध्यक्ष राजू वर्णवाल से हुआ । जैसे की समस्त गया शहर वासियों ने देखा था की 2014 वाली आंधी ने ऐसा कोहराम मचाया की डॉ प्रेम कुमार के सारे विरोधी परास्त हो गए। काँग्रेस उम्मीदवार को मिले थे 44102 वोट और राजू वर्णवाल को मिले थे 7170 वोट। डॉ प्रेम कुमार इस वर्ष 66891 वोट लाकर शीर्ष पर थे और उन्होंने फिर से गया शहर इतना वोट पाकर नया कृतिमान स्थापित किया था। चूंकि राजू वर्णवाल वर्ष 2015 का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़े थे मगर फिर भी चुनावी परिणाम में तीसरे क्रमांक पर थे।
अब बारी आती है 2020 के विधसभा चुनाव की। केंद्र में एनडीए सरकार के 5 वर्ष 2019 में ही पूर्ण हो चूके थे और एनडीए की दूसरी बार केंद्र में सरकार बन चूकी थी। 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा धारा 370 हटाकर, तीन तलाक जैसे मुद्दे को संवैधानिक अमान्य बताकर अपनी आंधी को बरकरार रखा था। अकतूबर महीने में बिहार विधानसभा के चुनाव होते हैं और इस बार फिर डॉ प्रेम कुमार ही गया शहर के एनडीए उम्मीदवार बनते हैं। अब एनडीए के सामने एक नया मोर्चा था। यह मोर्चा था “महागठबंधन” का जिसमे काँग्रेस और राजद एक साथ थे। यह चुनाव रोमांचक इसलिए भी था क्यूंकी गया शहर की जनता पिछले 7 बार से एक ही उम्मीदवार में अपने क्षेत्र का भविष्य देख रही थी और उन्हे लगता था की काँग्रेस अब कई वर्ष पीछे जा चूकी है। वर्ष 2014 एवं 2019 की बीजेपी की आंधी के बाद शहर की जनता अपना विकल्प बीजेपी के अलावा कहीं नहीं तलाश रही थी।
फिर होता है उम्मीदवार तय और काँग्रेस गया नगर निगम के उप महापौर डॉ मोहन श्रीवास्तव को अपना उम्मीदवार घोषित करती है। वही मोहन श्रीवास्तव जिन्होंने वर्ष 2010 का चुनाव काँग्रेस से लड़कर 7664 वोट प्राप्त किया था और अब फिर से काँग्रेस अपना उम्मीदवार इन्हे घोषित कर चूकी थी। महागठबंधन मोर्चा होने के बावजूद गया शहर से आरजेडी के उम्मीदवार को टिकट न देकर काँग्रेस के उम्मीदवार को टिकट दिया गया इस विश्वास के साथ की क्या यह उम्मीदवार सच में बीजेपी के उम्मीदवार का कड़ा प्रतिद्वंदी हो सकता है?
मगर एनडीए की आंधी अभी खत्म कहाँ होने वाली थी। इस चुनाव में भले ही एनडीए के उम्मीदवार की जीत हुई थी मगर इस चुनाव में एनडीए को हर तरफ से कड़ी प्रतिद्वंदीता का सामना कडा पड़ा। जहां गया शहर से डॉ प्रेम कुमार ने जीत दर्ज की और उन्होंने 66932 मत प्राप्त किया था। वहीं काँग्रेस उम्मीदवार डॉ मोहन श्रीवास्तव ने 55034 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे। बिहार में सरकार बनी एनडीए गठबंधन की जिसमे 125 NDA और 110 महागठबंधन की सीटें थीं। अगर 2015 से तुलना की जाए तो आरजेडी पार्टी काफी अच्छी स्थिति में था। इस चुनाव में गया शहर एक और उम्मीदवार श्री चैतन्य पालित जो की 1980 विधानसभा चुनाव विजेता स्वर्गीय जय कुमार पालित के सुपुत्र थे इन्होंने निर्दलीय ही चुनाव लड़ा था और 677 वोट प्राप्त किया था।
इस चुनाव ने गया शहर ने यह साबित कर दिया था की डॉ प्रेम कुमार का भी विकल्प गया शहर में मौजूद है। पिछले चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो डॉ प्रेम कुमार ने भले ही कम वोट के अंतर से सीपीआई के उम्मीदवार को शिकस्त दी थी मगर इस चुनाव में काँग्रेस के उम्मीदवार ने कुल वैध मतों का प्रतिशत और जीत का अंतर दोनों बढ़ा दिया था। इस चुनाव में गया शहरवासियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था जो की वोट प्रतिशत से साफ साफ झलकता है।
वर्ष 2025 के चुनाव बहुत ही नजदीक हैं। एनडीए गठबंधन के पार्टियों की संख्या वही रहेगी या घटेगी बढ़ेगी ये आने वाली हवा और वक्त तय करेगी। माननीय मुख्यमंत्री के कई सहयोगी एवं खुद एनडीए के शीर्ष नेता आगामी विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए का मुख्यमंत्री उम्मीदवार श्री नितीश कुमार को मान रहे हैं।
गया शहर से यह बात तो शत प्रतिशत सत्य है की एनडीए गठबंधन से बीजेपी का ही उम्मीदवार होगा। वर्तमान विधायक डॉ प्रेम कुमार भारतीय जनता पार्टी के 8 बार से विजयी हो रहे उम्मीदवारों की श्रेणी में सबसे प्रथम होंगे मगर फिर भी गया शहर भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं में सुगबुगाहट है की इस बार आलाकमान के द्वारा उम्मीदवार बदले जा सकते हैं। बीजेपी पार्टी 2020 के गया शहर के चुनावी नतीजों से भलीभाँति अवगत है की किस प्रकार डॉ प्रेम कुमार को अपने विरोधी और कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार डॉ अखौरी ओंकार नाथ उर्फ़ मोहन श्रीवास्तव से कड़ी प्रतिद्वंदिता मिली थी ।
महत्वपूर्ण सवाल यह है की महागठबंधन से गया शहर की उम्मीदवारी किसकी तय होगी? महागठबंधन द्वारा अक्टूबर 2025 के प्रथम सप्ताह में सीटों का बंटवारा पूरा कर लिया जाएगा. देखना यह है की गया शहर से कांग्रेस या राजद किसकी पार्टी की उम्मीदवारी तय होती है? डॉ मोहन श्रीवास्तव बेशक काँग्रेस एवं गया शहर के विकल्प के रूप में फिट बैठ सकते हैं. वर्ष 2007 से वो गया नगर निगम से जुड़े हुए हैं और गया शहर की एक जानी मानी शखशियत हैं . उनके पास गया शहर के नगर निगम में लगभग 20 वर्षों के कार्य का अनुभव भी है।
श्री राजू वर्णवाल जो की वर्ष 2015 में गया शहर विधासभा चुनाव निर्दलीय लड़ चुके हैं वो पुनः शेरघाटी विधानसभा से NDA से अपनी उम्मीदवारी का दावा कर रहे हैं वहीँ बेला विधानसभा से 2024 में हुए उपचुनाव में पूर्व एमएलसी एवं वर्तनाम की विधायक मनोरमा देवी का मुकाबला पूर्व बेलागंज विधायक एवं वर्तमान जहानाबाद जिला के सांसद डॉ सुरेन्द्र प्रसाद यादव के बेटे विश्वनाथ यादव से होना तय है. जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर भी बिहार में अपनी सरकार बनाने का दावा ठोक रहे हैं. परंतु गया शहर काँग्रेस एवं बीजेपी के छोटे मोटे नेता जो समय समय पर काँग्रेस या बीजेपी अध्यक्ष या अन्य शीर्ष नेताओं के साथ फोटो लेकर यह सोच रहे हैं की टिकट मिल जाएगा और खुद को अभी से ही भावी उम्मीदवार मान बैठे हैं तो वह जनता तो बाद में पहले खुद एवं अपनी पार्टी के साथ ही विश्वासघात करने पर तुले हैं। उन्हें यही सलाह है की चुनाव नजदीक है। भावी प्रत्याशी बनने की होड़ से बचे और जो सर्वविदित उम्मीदवार घोषित होने वाले हैं उनके साथ आगामी चुनाव की बागडोर संभालें।