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देवब्रत मंडल

गया का मेयर पद राजनीति के दलदल में अभिमन्यु के रथ के पहिए की तरह फंसता नजर आ रहा है। जिस प्रकार से महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु के रथ का पहिया कुरुक्षेत्र के मैदान में फंस चूका था और कौरव की सेना अट्टाहास लगा रही थी। यह राजनीति की पराकाष्ठा है या कुछ और?

किसकी जीत होगी और किसकी हार, समय का इंतजार

गया के मेयर को पद से च्युत करने के लिए गया नगर निगम का एक गुट जितना सक्रिय है ठीक इसके विपरीत एक गुट इसे बरकरार रखने के लिए। दोनों गुट अपनी तरफ से ताकत लगाए हुए है। इस राजनीतिक युद्ध में किसकी जीत होगी या फिर किसकी हार, ये समय के गर्त में छिपा है।

अब बहुत कुछ साफ हो गया है

आखिर कौन कौन हैं जो दोनों गुट के ‘सेनापति’। इस बात को अब बताने की आवश्यकता नहीं। सब जाहिर हो चुका है। जो कल तक पर्दे के पीछे से क्षद्म रूप से तीर पर तीर चला रहे थे, वे अब सामने आ चुके हैं। इसलिए सेनापतियों के बारे में जिक्र करना उचित नहीं।

शतरंज के बिसात पर बन गए कई मोहरे

शतरंज के इस बिसात पर कौन कौन मोहरा बने हुए है और कौन कौन पीछे से लीड कर रहा है ये सब बातें अब मायने नहीं रखता। बात ये मायने रख रहा है कि आखिर मेयर बीरेंद्र कुमार उर्फ गणेश पासवान के सामने पूर्व विधायक सह भाजपा नेता डॉ श्यामदेव पासवान क्यों और कैसे खड़ा हो गए। इसके पीछे कई कहानियां लोगों के बीच चर्चा में है। ये सच है कि पूर्व विधायक श्री पासवान जब चुनाव हार गए तब के बाद से मेयर का पद विवादों के घेरे में आया।

कुछ रण बांकुरे पहले हो चुके हैं पराजित

इसके पहले कुछ लोग मेयर के सामने आए लेकिन बीच में ही रणक्षेत्र से या तो भाग गए या फिर मेयर ने उन्हें पराजित कर दिया। अब एक और योद्धा मेयर के सामने डॉ श्यामदेव पासवान के रूप में हैं। जिसके पीछे एक राजनीतिक ताकत खड़ी है। वहीं मेयर के साथ भी एक से एक रण बांकुरे हैं। दोनों ओर से शब्दों के तरकस से तीर चल रहे हैं। कभी श्यामदेव पासवान के पक्ष के लोग तो कभी मेयर के पक्ष के लोग घायल हो रहे हैं।

अब तो ‘समय’ के हाथ में है निर्णय

इस ‘वाक युद्ध’ को गयाजी की जनता देख व सुन रही है। कभी एक पक्ष के तो कभी दूसरे पक्ष का पलड़ा भारी होता दिखाई दे रहा है। अब यह युद्ध विराम की ओर गमन करता दिखाई दे रहा है, लेकिन निर्णय तो इन दोनों के हाथों से निकल कर ‘समय’ के हाथ में चला गया है। बीआर चोपड़ा के निर्देशन में बनी ‘महाभारत’ टीवी सीरियल की वो बात याद करें जो नेपथ्य से सुनाई देती है- मैं समय हूं, आगे क्या होने वाला है? इसके बारे में नहीं बताया जाता था लेकिन संभावनाओं की ओर इशारे से काफी कुछ ‘समय’ कह जाता है। इस आधुनिक ‘महाभारत’ के रचयिता भी नहीं बता सकते हैं कि आगे क्या होगा।

इस क्षद्म युद्ध के केंद्र में बीता हुआ कल, दोनों बने हैं ‘मोहरा

अब तक जो भी देखा गया उसके बारे में कुछ कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। जिस प्रकार महाभारत के युद्ध में कारण बीता हुआ कल था, ठीक इस ‘क्षद्म युद्ध’ के केंद्र में भी दोनों ओर से बीता हुआ ‘कल’ ही कारण नजर आता है। कुछ लोगों का कहना है कि यदि बीते हुए ‘कल’ पर नजर डालें तो मेयर इस क्षद्म युद्ध में एक ‘मोहरा’ बने हुए हैं। जिस तरह अभिमन्यु। जिसके सूत्रधार कोई और हैं। ठीक उसी तरह डॉ श्यामदेव पासवान भी ‘मोहरा’ बने हैं। जीत या हार ‘समय’ तय करेगा, लेकिन नेपथ्य में हार या जीत किसी और की होगी, जिसकी चर्चा सभी की जुबां पर है। ‘भीष्म पितामह’ की तरह ‘मृतशैय्या’ की विवशता या फिर ‘बर्बरीक’ की तरह पराक्रमी की भूमिका में कोई और। इस ‘आधुनिक महाभारत के युद्ध’ को जनता देखने को विवश हैं।