गया। बिहार के ग्रामीण इलाकों में तेजी से फैल रहे माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के मकड़जाल ने एक और जिंदगी लील ली। मेडिकल थाना क्षेत्र के मोर मर्दाना पंचायत के श्री सानीचक गांव में किस्त न चुका पाने के कारण माइक्रोफाइनेंस कंपनी के कर्मचारियों की बदसलूकी से आहत एक महिला, सुगिया देवी, ने ज़हर खा लिया। अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।

बेटे की शादी के लिए लिया था लोन

मृतका के परिजन

मृतका के बेटे रोहित चौधरी के मुताबिक, उसने अपनी बहन की शादी के लिए कंपनी से तीन लाख रुपये का लोन लिया था। आधे से ज्यादा राशि चुका दी गई थी, लेकिन किसी कारणवश पिछली दो किस्तें समय पर जमा नहीं हो पाई थीं। रोहित ने बताया कि वह ड्राइवर है और घटना के समय ड्यूटी पर था। कंपनी के कर्मचारियों ने फोन कर तुरंत किस्त जमा करने का दबाव बनाया। शाम तक पैसे देने का वादा करने के बावजूद कर्मचारी उनके घर पहुंच गए और मां के साथ दुर्व्यवहार किया।

गाली-गलौज से आहत होकर उठाया आत्मघाती कदम

कंपनी के कर्मचारियों ने सुगिया देवी के साथ गाली-गलौज की और उन्हें अपमानित किया। यह घटना गांव वालों के सामने हुई, जिससे मानसिक दबाव में आकर उन्होंने ज़हर खा लिया। परिजनों का कहना है कि मां अपने अपमान को सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने यह दुखद कदम उठाया।

ग्रामीणों में आक्रोश

घटना के बाद से गांव में आक्रोश का माहौल है। ग्रामीणों का आरोप है कि माइक्रोफाइनेंस कंपनियां गरीबों पर अनावश्यक दबाव बनाती हैं और छोटी-छोटी देरी पर अपमानजनक व्यवहार करती हैं। मृतका के पति रघुवीर चौधरी ने कहा, “कंपनी ने केवल दो किस्तों की देरी पर ऐसा रवैया अपनाया, जबकि आधे से अधिक लोन चुका दिया गया था। यह पूरी तरह से अनुचित है।”

पुलिस ने शुरू की जांच

मेडिकल थाना पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। पुलिस ने बताया कि पीड़ित परिवार की शिकायत पर संबंधित कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

माइक्रोफाइनेंस कंपनियों का बढ़ता आतंक

पिछले कुछ सालों में बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने तेजी से अपना जाल बिछाया है। कम ब्याज का लालच देकर ये कंपनियां 26% से 36% तक ऊंची ब्याज दरों पर लोन उपलब्ध कराती हैं। समय पर किस्त न चुका पाने पर इन कंपनियों के वसूली एजेंट अक्सर दुर्व्यवहार और धमकी जैसे तरीकों का सहारा लेते हैं।

सवाल खड़े करता है यह मामला

सुगिया देवी की मौत ने एक बार फिर माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की मनमानी और गरीबों पर पड़ने वाले असर को उजागर कर दिया है। क्या सिर्फ दो किस्तें न चुकाने पर किसी को अपमानित करना जायज है? इस मामले ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था और इन कंपनियों के कामकाज के तरीकों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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