वरीय संवाददाता देवब्रत मंडल

गया नगर निगम चुनाव और इसके बाद आए परिणाम के 90 दिन पूरे हो गए हैं। चुनाव के समय जनता के समक्ष किए वायदे और उनके इरादों के भी तीन महीने का समय पूरा हो चुका है। फिलहाल 52 वार्ड पार्षदों वाले गया नगर निगम में मेयर, डिप्टी मेयर के साथ पार्षदों के शपथ ग्रहण कर लिए जाने के बाद जनता उम्मीद भरी निगाहों से इनके तरफ देख रही है। नए बोर्ड के गठन के बाद सशक्त स्थायी समिति के सदस्यों के चयन और विभिन्न समितियों के गठन को लेकर उठा तूफान इन 90 दिनों बाद भी नहीं थमा। सशक्त स्थायी समिति और निगम बोर्ड की अबतक जितनी बैठकें हुई, उसमें पार्षदों ने निगम में हुए कथित अनियमितता कहें या फिर घोटाले की ही चर्चा सुर्खियों में है। कई वार्ड पार्षदों का एक अलग गुट है जो कथित घोटाले पर जांच की मांग कर रहे हैं। एसीपी के लाभ लेने का मुद्दा सबसे बड़ा है। बाकी सामग्रियों की खरीदारी का मुद्दा हो या फिर योजनाओं के लिए अभियंताओं द्वारा ली गई अग्रिम राशि के हिसाब किताब का मुद्दा हो। इन सभी के बीच वित्तीय वर्ष 2023-24 का वार्षिक बजट भी फंस गया है। पिछली बोर्ड से इस बार के बोर्ड के मिजाज कुछ क्या काफी अलग हैं। सदन में कभी एक चुप्पी सी हुआ करती थी और बजट पारित हो जाया करता था, लेकिन इस बार उठाए गए मुद्दे थमने का नाम नहीं लिया है। सूत्रों की माने तो बजट पारित कराने के लिए रायशुमारी भी चली। कुछ मुद्दों पर असहमति रहने के कारण बजट में आंशिक संशोधन की बात हो चुकी है। 31 मार्च को बजट पर चर्चा और इसे पारित करने के लिए बैठक होनी है। लेकिन पिछली बैठकों में जो मांग उठाए गए थे, उसमें कई के जवाब लिखित रूप में या फिर संचिकाओं के साथ संबंधित को उपस्थित रहने के लिए कहा गया है। निगम बोर्ड उच्च सदन होता है। जिसमें किसी भी प्रस्ताव को पारित कराने के लिए या तो सर्वसम्मति होनी चाहिए या फिर नहीं तो वोटिंग का भी प्रावधान है। ऐसे में मेयर के लिए भी और साथ साथ नगर आयुक्त के लिए बजट पारित करवाना एक बड़ी चुनौती साबित होगा। इधर, क्षेत्र में संबंधित पार्षदों की खिंचाई शुरू हो गई है। लोग सड़क, नाली, गली, बिजली के बल्ब, पानी आपूर्ति जैसे जन सुविधाओं की मांग करने लगे हैं। गत बोर्ड द्वारा पारित योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्यालय के संबंधित प्रभारी नए पार्षदों को तरजीह नहीं दे रहे हैं। उन्हें सही सही जानकारी नहीं दी जा रही है। जिसके कारण नवनिर्वाचित पार्षदों के साथ फजीहत हो रही है। अब चुकी 90 दिनों का एक बड़ा वक्त पार्षदों का गुजर चुका है तो जनता तो सवाल करेगी हीं। क्योंकि उन्होंने वोट देने से पहले उनसे वायदे करवाए हैं। पार्षदों के इरादे भी नेक हैं, लेकिन इस सब के बीच निगम कार्यालय में बैठे विभिन्न विभागों के प्रभारी पदाधिकारी को पारदर्शी तरीके से सभी के साथ समान रूप से पेश होना चाहिए। तब जाकर लोगों की समस्याओं का निदान क्रमवार शुरू होकर खत्म होगा।