वरीय संवाददाता देवब्रत मंडल
विवेकानंद केन्द्र कन्या कुमारी और हिन्दी विभाग गया कॉलेज गया के द्वारा गया कॉलेज गया के प्रेमचंद सभागार में अमृत महोत्सव के अवसर पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन में मुख्य वक्ता के तौर पर पद्मश्री निवेदिता रघुनाथ भिड़े आमंत्रित थी। गया कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. दीपक कुमार मुख्य अतिथि रहे। कार्यक्रम का मुख्य विषय था ‘युवाओं में स्व की चेतना’। इस कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए वाणिज्य विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर शिवशंकर गुप्ता ने स्वामी विवेकानंद के जीवन और मूल्यों की सविस्तार से चर्चा की। पूर्व उप-प्रधानाचार्य, मिर्जा गालिब कॉलेज डॉ. अरुण कुमार ने विषय को परिभाषित करते हुए युवाओं का आवाह्न किया कि वे स्वयं को जानते हुए देशनिमार्ण के कार्य में आगे बढ़ें। प्रधानाचार्य डॉ दीपक कुमार से आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि वे विवेकानंद केन्द्र की योजनाओं को कॉलेज में जरूर लागू करवाएं। यह कॉलेज बहुत बड़ा है और मगध की शान है।
हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ आनंद कुमार सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी की कविता पुष्प की अभिलाषा की उस इच्छा का जिक्र किया जिसमें बलिदान को रेखांकित किया गया है। उन्होंने दिनकर का भी राष्ट्र के संदर्भ में उल्लेख किया। साथ ही कॉलेज के छात्रों को पठन पाठन में संलग्न रहने की नसीहत दी।
प्रधानाचार्य डॉ दीपक कुमार ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विषय को परिभाषित करते हुए कहा कि अमृत महोत्सव की शृंखला का एक महत्वपूर्ण आयोजन है जिसमें युवाओं में स्व की चेतना विषय एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। उन्होंने इसके आध्यात्मिक महत्व को रेखांकित करते हुए चेतना और स्व को परिभाषित किया। त्त्वमसि और ‘अहम ब्रह्मास्मि’ को स्पष्ट करते हुए विवेकानंद के महत्व को रेखांकित किया।
वीणा रानी, गया नगर केन्द्र की प्रमुख ने सुश्री निवेदिता रघुनाथ भिड़े का परिचय विस्तार से दिया। सुश्री निवेदिता का संपूर्ण जीवन सेवा का जीवन रहा है। वे पद्म श्री से सम्मानित की जा चुकी हैं।
सुश्री निवेदिता रघुनाथ भिड़े ने सबको संबोधित करते हुए कॉलेज के प्रधानाचार्य और हिन्दी विभाग के अध्यक्ष का आभार व्यक्त किया। उन्होंने संबोधन की शुरुआत करते कहा कि आजादी के पचहत्तर वर्ष पर हमें न सिर्फ राष्ट्र के बारे में उनके स्वतंत्रता सेनानियों का स्मरण करना है बल्कि अपने को भी जानना है। तमाम निराशाओं के बाबजूद यह शरीर जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए मिला है। स्वामी विवेकानंद के समय की चर्चा करते हुए उन्होंने उस समय के कठिन जीवन की चर्चा की उस समय युवाओं के आंखों में सपने मर रहे थे और स्वामी जी ने उन परिस्थितियों से मुकाबला किया और राष्ट्र की आंखों में सपने रोपे। उन्होंने युवाओं को संकल्प लेने को कहा। स्व की चेतना स्वयं में बदलाव की चेतना है। उन्होंने सिकंदर का उल्लेख करते हुए कहा कि विश्वविजेता सिकंदर ने देखा यहां के ऋषि मुनियों में डर नहीं था। उन्होंने भारतीय ऋषि दंडामिश से सिकंदर की भेंट के प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि वह भारत की आत्मचेतना और जागृति से प्रभावित हुआ और कहा कि कोई भी भारत को जीत नहीं सकता। सुश्री निवेदिता ने स्वामी विवेकानंद को भारत के आत्मविश्वास जागृत करने वाला महान विचारक बताया। अमेरिका में विश्व धर्म सभा में स्वामी जी के भाषण का उल्लेख करते हुए स्वामी जी के संघर्ष को बड़ी आत्मीयता से उजागर किया। 1893 में दिए गए उनके भाषण के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा वह एक महज एक भाषण नहीं था बल्कि देश के स्वाभिमान और भारतीय संस्कृति को जगाने और पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया थी। उन्होंने कॉलेज में युवाओं को जागृत करने की एक रूपरेखा भी प्रस्तावित की। हम छात्र के रूप में क्या-क्या कर सकते हैं? चेतना जब जागृत होती है तो वह कार्य रूप में दिखाई पड़ती है। आने वाले पच्चीस वर्षों में जब भारत की आज़ादी के सौ वर्ष हो जाएंगे तब हम युवा उस समय तक क्या कर सकते हैं? भारत का जीवन एकात्म का जीवन है। अभी हमारे देश में कुछ भी भारतीय नहीं है न शिक्षा, न व्यापार न चेतना। हमें अपने देश के बारे में कुछ सोचेंगे। अपने को देश निर्माण के तैयार करेंगे। सच में हम बदलाव ला सकते हैं। हम अपने में संकल्प लें और विश्व को मार्गदर्शन करें। कार्यक्रम का अंत आनंद प्रसाद के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। इस सफल आयोजन में हिन्दी विभाग के सभी शिक्षकगण और गया कॉलेज के सभी विभागों के फैकल्टी मैंबर उपस्थित थे।