आढ़तपुर मानवाधिकार हनन मामला, विशाल दफ्तुआर की शिकायत पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का सख्त रूख
वरीय संवाददाता देवब्रत मंडल
आढ़तपुर मानवाधिकार हनन मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने गया के एसएसपी को निर्देश दिया है कि आगामी 2 दिसंबर तक इस मामले में मुकम्मल रिपोर्ट भेज दें। अन्यथा प्रोटेक्शन आफ ह्यूमन राइट्स एक्ट 1993 की धारा 13 के तहत कोअर्सिव प्रोसेस शुरू करने की चेतावनी दी है।गौरतलब है कि गया के बेलागंज थाना के आढ़तपुर गाँव में पुलिस द्वारा 19 फरवरी को महिलाओं के साथ की गई बेरहमी और दुर्व्यवहार मामले में चर्चित अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं ह्यूमन राइट्स अम्ब्रेला फाउंडेशन-एचआरयूएफ के चेयरमैन विशाल रंजन दफ्तुआर ने 24 फरवरी को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मुख्यालय को पत्र भेजा था। आयोग ने तब 48 घंटों की कार्यावधि में इस संवेदनशील मामले पर कार्रवाई करते हुये आढ़तपुर मानवाधिकार हनन मामले को केस के तौर पर रजिस्टर कर लिया था। जिसका केस नंबर है 956/4/11/2022 है। विशाल दफ्तुआर ने बताया कि आयोग को भेजे गये पत्र में उन्होंने लिखा था कि मानवाधिकार हनन के इस वीभत्स घटना पर एनएचआरसी की तत्काल पहल जरूरी है। यह राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है। बिहार के गया जिला के बेलागंज थाना के आढ़तपुर गाँव में पिछले दिनों पुलिस ने महिलाओं के साथ जैसी बर्बरता बरती, वह अत्यंत गंभीर मानवाधिकार हनन की घटना है। महिलाओं की साड़ी को फाड़कर उनके हाथ बांधे गये। उनसे बर्बरता की गई। कड़ी कार्रवाई का विषय है। श्री दफ़्तुआर ने बताया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2 मार्च को जारी अपने निर्देश में इस अत्यंत गंभीर मानवाधिकार हनन मामले में गया के तत्कालीन एसएसपी से चार सप्ताह में जवाब मांगा था। फिर 12 जुलाई को रिमाइंडर भेजकर 12 सितंबर तक रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन गया एसएसपी के द्वारा रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को 25 अक्टूबर को सख्त आदेश जारी करना पड़ा।
कहते हैं दफ़्तुआर

आढ़तपुर मानवाधिकार हनन मामले में उन्होंने राज्य सरकार की उदासीनता के कारण 24 फरवरी को पहल की थी। जबकि घटना 18 फरवरी 2022 को घटित हुई थी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा हस्तक्षेप करने और रिमाइंडर जारी करने के बावजूद इस मामले में गया के एसएसपी द्वारा अब तक रिपोर्ट नहीं भेजा जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इस मामले में एनएचआरसी द्वारा कोअर्सिव प्रोसेस शुरू करने की सख्त चेतावनी जारी करना दरअसल राज्य सरकार के सिस्टम पर भी सवालिया निशान है। जिसके मातहत अफसर मानवाधिकार संरक्षण जैसे मूल अधिकारों के प्रति संवेदनहीन बने हुये हैं?