✍️ दीपक कुमार , मगध लाइव न्यूज
अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका द इक्नॉमिस्ट के मई 2022 अंक में छपी एक खबर जो दुनिया में आनेवाली फूड क्राइसिस को लेकर छपी थी। इस पत्रिका के कवर पेज पर छपी गेंहू की बाली और बाली में लगी नर कंकाल की तस्वीरें, क्या कुछ कहना चाह रही है? क्या ये फूड क्राइसिस भारत जैसे कृषि प्रधान देश में भी देखने को मिलेगी? जी हां आज की खबर इसी को लेकर है l

पिछले कुछ सप्ताह से जिस तरह से धान की फसल में फुदका कीट से किसानों के कई एकड़ जमीन में लगी धान की फसल बर्बाद हुए है। ये एक भयावह स्थिति को ओर इशारा कर रही है। हालांकि इस बर्बादी का सही सही आकलन या सरकारी आंकड़ा अभी तक नही प्राप्त हुई है। लेकिन जो जानकारी अभी तक मिली है ये स्थिति बहुत भयावह होती दिख रही है। एक तरफ जिले में अधिकाश किसान सुखाड़ के कारण त्रस्त है वही दूसरे तरफ जिले के विभिन्न प्रखंड में धान के कीट-व्याधियों के प्रकोप से धान की फसल बर्बाद होने की खबर मिल रही है। मगध लाइव की टीम जब इसकी पड़ताल करने गया जिले के फतेहपुर प्रखंड के चरोखरी पंचायत पहुंची तो वहां के एक किसान सुरेंद्र यादव ने बताया की करीब 6 बीघे में मैंने धान की फसल लगाई थी लेकिन फुदका कीट के कारण पूरी फसल बर्बाद हो गया।

क्या कह रही है कृषि विभाग
अधिकांश मामलों में स्थलीय जांच में BPH कीट (फूदका कीट, भूरा मधुआ का आक्रमण पाया गया। जिला कृषि पदाधिकारी सुदामा महतो ने बताया कि BPH कीट (फूदका कीट/भूरा मधुआ) का आक्रमण अगस्त-सितम्बर से प्रारम्भ होकर धान की कटाई तक रहता है। इस कीट का आक्रमण जिन खेतो में यूरिया का उपयोग बहुत ज्यादा तथा पोटाश एवं फाॅस्फेट का उपयोग कम किया गया है, वहां ज्यादा होता है। अर्थात जिन धान के खेतों में यूरिया का बहुत उपयोग होता है उन खेतों में BPH (फूदका कीट/भूरा मधुआ) का आक्रमण होता है। उन्होंने कहा प्रारम्भ में ये कीट थोड़ी जगह पर आक्रमण करते है, फिर ये कीट रिंग/गोलाई में आगे बढ़ते है। BPH (फूदका कीट) के कीट धान के तनों पर चिपके रहते हैं तथा इसका जूस(रस) पी जाते हैं। इससे पौधे शक्तिहीन होकर लूंज-पूंज पुआल हो जाते हैं। जिसके कारण इन पुआलों को जानवर भी नही खाते। ज्यादा समय तक नियंत्रण नहीं होने पर पूरे खेत को बर्बाद कर देते है। निम्फ तथा एडल्ट दोनों पौधो को प्रभावित करते है।
गया जिले में कृषि कार्यों पर काम कर रही संस्था आहार फाउंडेशन के चेयरमैन अमित प्रकाश ने बताया की ये अभी धान में लगने वाले कीड़ा का प्रकोप कोरोना से भी अधिक तेजी से फैल रहा है इसका बचाव के लिए किसानों को जागरूक होने की जरूरत है।

किसान कैसे बचा सकते है अपनी फसल?
जिला कृषि पदाधिकारी ,गया ने जानकारी देते हुए बताया कि भूरा मधुआ कीट धान का रस तनो से चूसता है। ये हल्के भूरे रंग के होते हैं। वयस्क एवं बच्चे पौधे तने के आधार मे रस चूसते हैं। अधिक रसश्राव के कारण पौधे पीले हो जाते हैं तथा जगह जगह गोल चटाईनुमा क्षेत्र बनता है जिसे हाॅपर बर्न कहते है। इससे बचने के लिए प्रभावित क्षेत्र को गोलाई से घेरकर निम्न कीटनाशकों का छिड़काव धान के जड़ों में छिड़काव करना है। न की उसके पत्ते पर ।


- एसिटामेप्रिड 20% एस पी 0.25 ग्राम
- बूप्रोफेजिन 25% एस सी 1.5 मिलीलीटर
- कार्बोसल्फान 25 ई सी 1.5 मिलीलीटर
- इथोफेनोप्राक्स 10% ई सी 1 मिलीलीटर
- थायामेथाक्साम 25 % डब्लू जी 1 ग्राम
- फिप्रोनिल 0.5 एस सी 2 मिलीलीटर
- एसिफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8 % एस पी 2 ग्राम
- फिप्रोनिल 0.4 % + थायमेथाक्साम 4 % एस सी 2 मिलीलीटर
प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल में छिड़काव करना है। 1 एकड़ में लगभग 150 से 200 लीटर पानी का प्रयोग किया जाना चाहिए। इनमें से कोई एक दवा प्रयोग करें एवं 5 दिन पर दुबारा स्प्रे करें।
क्या ऐसे किसानों को सरकारी सहयोग मिलेंगे ?
इस बारे में जिला कृषि पदाधिकारी ने बताया की कीटनाशकों के छिड़काव के लिए किसानों को अनुदान दिया जाएगा ,वैसे जिन किसानों ने फसल बीमा करा रखी है उन्हे राज्य सरकार से अनुदान दिया जाएगा।