
दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय स्पीक मैके द्वारा मधुबनी चित्रकला पर आधारित एक दिवसीय वर्चुअल माध्यम से कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें विश्वविद्यालय के विभिन्न संकाय के विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। मधुबनी चित्रकला के प्रख्यात कलाकारा अंबिका देवी ने चित्रकला के विभिन्न पहलुओं पर अपनी बात रखी और उपस्थित विद्यार्थियों को लाइव चित्रांकन करके दिखाया। साथ ही प्रतिभागियों को मधुबनी कला में पांच विशिष्ट शैलियों, अर्थात् भर्णी, कच्छनी, तांत्रिक, गोदा और कोहबर के बारे में विस्तार पूर्वक जानकरी दी। उन्होंने बताया कि 1960 के दशक में भर्णी, कच्छनी और तांत्रिक शैली मुख्य रूप से ब्राह्मण और कायस्थ महिलाओं द्वारा की जाती थी। जो भारत और नेपाल में ऊंची जाति की महिलाएं थी उनके विषय मुख्य रूप से धार्मिक थे और उन्होंने अपने चित्रों में देवताओं और देवियों, वनस्पतियों और जीवों को चित्रित किया। वही समाज के अंतिम पायदान पर रहने वाले लोगों की चित्रकारी में उनके दैनिक जीवन और प्रतीकों, राजा शैलेश [गांव की रक्षा] की कहानी और आदि उनके चित्रों में शामिल था । लेकिन आजकल मधुबनी कला वैश्वीकृत कला रूप बन गई है। इसलिए जाति व्यवस्था के आधार पर इस क्षेत्र के कलाकारों के काम में कोई अंतर नहीं है। अब सभी लोग पांचों शैलियों में काम कर रहे हैं। इसी वजह से मधुबनी कला को विश्वव्यापी ध्यान मिला है।
इस मौके पर दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति हरिश्चंद्र सिंह राठौर ने बताया कि भारतीय कला और संस्कृति को युवाओं तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए और इसमें स्पीक मैके जैसे संस्थाओं का योगदान काफी महत्वपूर्ण है। बिहार स्पीक मैके के वरिष्ठ स्वयंसेवक विवेक सिन्हा, मनीष ठाकुर ने भी अपनी बातों को रखा, कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन डा प्रियेरंजन ने किया वहीं कार्यक्रम के सफल संचालन में विश्वविद्यालय के छात्र उज्जवल, कृतिका, प्रभाकर व पुरुषोत्तम का योगदान सराहनीय रहा।
रिपोर्ट – आलोक रंजन