रिपोर्ट – आलोक रंजन ,टिकारी अनुमंडल संवाददाता

भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में गया जिले के टिकारी का योगदान भूलाया नही जा सकता। 1857 की क्रांति से लेकर देश की आजादी तक के आन्दोलन में टिकारी राज परिवार सहित दर्जनों लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे। टिकारी के 16-17 ऐसे प्रमुख क्रांतिकारी योद्धा थे जिन्हें आजादी के बाद स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान प्रदान किया गया ।
1857–58 के सिपाही विद्रोह के दौरान टिकारी राज की महारानी इन्द्रजीत कुंवर पर विद्रोहियों को शरण देने का आरोप लगाते हुए अंग्रेजों ने टिकारी राज के किला की तलाशी ली थी। यह सच है कि आन्दोलनकारियों को अप्रत्यक्ष सहायता दी जा रही थी और 10 हजार रूपया टिकारी राज द्वारा उन्हें प्रदान किया गया था। इस्ट इंडिया कंपनी का शक और बढ़ गया तथा किले को ढाह कर रानी को पटना लाने का फरमान जारी कर दिया गया था। क्रांतिकारी जीवधर सिंह के नेतृत्व में विद्रोहियों का एक दल टिकारी से कुछ दूरी पर डेरा डाली थी, जिसकी भनक अंग्रेजों को नहीं लग पाइ।

1908 ई में बिहार कांग्रेस का प्रथम प्रान्तीय सम्मेलन पटना और दूसरा 1909 ई में भागलपुर में हुआ था। दोनों सम्मेलनों में टिकारी महाराजा गोपाल नारायण सिंह डेलीगेट के रूप में भाग ली थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 25 वां अधिवेशन जो बांकीपुर में था, उसमें भी गोपाल शरण ने भाग ली थी। 1933 ई में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक आन्दोलन में लाठी चार्य एवं गिरफतारियां भी हुई थी जिसमें टिकारी के 8 आन्दोलनकारी बंदी बनाए गए थे। इसके बाद गांव गांव में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू हो गई थी। स्वतंत्रता सेनानियों की गुप्त बैठके राजेन्द्र प्रसाद, विष्णुदेव नारायण सिंह और लाव के महावीर प्रसाद सिंह के नेतृत्व में होते रहा और आन्दोलन को और तेज कर दिया गया था। अंग्रेजो को इसकी भनक लगते ही दोनों को गिरफतार कर लिया गया। लेकिन जनता के भारी विरोध एवं आकोश के कारण उन्हें छोड़ना पड़ा।
सन 1942 के अगस्त कांति के दौरान अंग्रेजों के विरूद्ध विरोध का स्वर और तेज हो गया। कहीं सड़कें तो कहीं पुल तोड़ दिए गए थे। 17 अगस्त 1942 को टिकारी थाना में कैद कई क्रांतिकारियों को अंग्रेजी सेना के चंगुल से छुड़ा लिया गया। स्थिति को देखते हुए विशेष फौजी दस्ता टिकारी में तैनात कर दिया। टिकारी राज द्वारा स्थापित टिकारी राज स्कूल भी आन्दोलन में कुद पड़ा। 11 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के अंग्रेजो भारत छोड़ो के आहवान पर विद्यालय के छात्र सड़क पर उत्तर आए और इन्क्लाब जिन्दावाद का नारा बुलंद करते हुए टिकारी थाना को घेर लिया था। इंक्लाबी छात्रों को विद्यालय के प्रधानाध्यापक राजेन्द्र प्रसाद सिंह की हिमायत प्राप्त थी। उनके इस कदम के कारण तत्कालिन जिला मजिस्ट्रेट मिस्टर वार्ल्स ने राजेन्द्र बावू के विरूद्ध सख्त कदम उठाते हुए विद्यालय के 9 छात्रों को गिरफतार कर लिया था। 1939 में महज 14 वर्ष की उम्र में आजादी की लड़ाई में कुदने वाले चितौखर के विषणुदेव नारायण सिंह और महाविर सिंह के नेतृत्व में 36 कांतिकारियों का दल टिकारी थाने में लगे अंग्रेजी हुकूमत के झण्डे को जला दिया था।
टिकारी के कुछ प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी
- रामचंद्र मिश्र
- महावीर प्रसाद सिंह
- अवधेश चरण सिंह
- गुरू देहल दास
- कुलदीप सिंह
- बैद्यानाथ शर्मा
- मोहन प्रसाद सिंह
- नन्द किशोर मिश्र
- कर्ण सिंह
- मुन्द्रिका सिंह
- रामाश्रय सिंह
- रामचरण सिंह
- फागु साव
- केदारनाथ सिंह
- जवाहर साव
- दलू सिंह
- परशुराम सिंह
- राम अवतार शर्मा
- विष्णुदेव नारायण सिंह
टिकारी प्रखंड कार्यालय परिसर में लगे शिलापटट में मात्र 14 स्वतंत्रता सेनानियों का नाम अंकित किया गया है।


