दोनों अपने अपने अधिकारों और कर्तव्यों को लेकर दिख रहे आमने-सामने

वरीय संवाददाता देवब्रत मंडल
गया नगर निगम में सब कुछ ठीक ठाक नहीं लगता है। निगम बोर्ड के गठन से लेकर सशक्त स्थायी समिति के गठन के बाद बोर्ड और सशक्त स्थायी समिति की बैठकों की बात करें तो दोनों जगहों पर स्थिति सामान्य नजर नहीं आ रहे हैं। शुरुआत में ही अधिकार, कर्तव्य और दायित्वों के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिशें जारी है। इसी बीच अब एक नया मामला सामने आ गया है। एक तरफ महापौर तो दूसरी तरफ नगर आयुक्त के बीच टकराव की स्थिति की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। दोनों अपने अपने अधिकारों और कर्तव्यों को लेकर पत्राचार करने लगे हैं। एक तरफ मेयर सशक्त स्थायी समिति के अधिकार और कर्तव्यों को लेकर सजग दिखाई दे रहे हैं तो दूसरी तरफ नगर आयुक्त सशक्त स्थायी समिति के अधिकारों और कर्तव्यों को लेकर सरकार से मार्गदर्शन मांग रहे हैं। बात तो दलित उत्पीड़न तक जा पहुंची है। बैठकों के लिए कार्यवृत्त पर सवाल उठाए जाने लगे हैं।
एक तरह से देखा जाए तो एक स्वायत्त संस्था(नगर निगम) में यदि इस तरह की बातें होने लगी है तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में अच्छी बात नहीं कही जा सकती। एक तरफ कार्यवृत्त के विलोपन की बात हो रही है तो वहीं, कार्यवृत्त पर चर्चा करने से कतराने की बात हो रही है। समिति कार्यपालक पदाधिकारी से प्रशासक अवधि में हुए कार्यों का हिसाब किताब करने को कह रही है तो कार्यपालक पदाधिकारी 2007 से 2021 तक के ऑडिट रिपोर्ट की महत्वपूर्ण विंदुओं पर, 2017 से 2022 तक हुए परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट और पूर्व में महत्वपूर्ण वित्तीय मामलों की विंदुओं पर विचार करने की बात कह रहे हैं।
ऐसे में अब गया नगर निगम के कार्यपालक पदाधिकारी अभिलाषा शर्मा जो कि भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी भी हैं ने सरकार को एक पत्र लिखने की बात कहते हुए उनसे मार्गदर्शन की मांग कर दी हैं। वहीं दूसरी तरफ सशक्त स्थायी समिति के पदेन अध्यक्ष महापौर बीरेंद्र कुमार एवं समिति के सदस्यों में अप्रत्यक्ष रूप से एक रोष व्याप्त है।