बीएचयू के विधि विभाग के वरीय शिक्षक प्रोफ़ेसर डॉ. दिनेश कुमार श्रीवास्तव थे मुख्य वक्ता

गया के अनुग्रह मेमोरियल लॉ कॉलेज के सभागार में एक संगोष्ठी सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार का विषय “विज्ञान एवं विधि के दृष्टि में मृत्यु” रखा गया। सेमिनार में मुख्य वक्ता प्रोफ़ेसर डॉ. दिनेश कुमार श्रीवास्तव, वरीय शिक्षक विधि विभाग बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी थे। सभा की अध्यक्षता अनुग्रह मेमोरियल लॉ कॉलेज के डॉ प्रदीप कुमार प्रोफेसर इंचार्ज अनुग्रह मेमोरियल लॉ कॉलेज गया एवं संकायाध्यक्ष विधि संकाय मगध विश्वविद्यालय बोधगया ने किया। प्रोफेसर डॉ सेजल कुमार श्रीवास्तव प्राचार्य अनुग्रह मेमोरियल कॉलेज समारोह के संरक्षक एवं विशिष्ट अतिथि गया बार एसोसिएशन के सचिव बिहार बार काउंसिल के माननीय सदस्य मुरारी कुमार हिमांशु रहे। इस अवसर पर महाविद्यालय के विभिन्न विभागों के शिक्षक शिक्षकेतर कर्मचारी गण एवं छात्र छात्राओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। अपने अभिभाषण में डॉक्टर सेजल कुमार श्रीवास्तव ने भौतिकी तथा जीव विज्ञान के संदर्भ में मृत्यु के विभिन्न आयामों को परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि शरीर एक खुली प्रणाली है, जिसमें ऊर्जा का आवागमन चलता रहता है। मृत्यु की स्थिति में कोशिकाओं का पूर्णजन्म बंद हो जाता है एवं एंट्रॉपी अपने चरम पर पहुंच जाता है। उन्होंने मृत्यु के विभिन्न स्तरों जैसे क्लीनिकल मृत्यु, बायो लॉजिकल मृत्यु इत्यादि की चर्चा की और साथ ही लाइफ सपोर्ट सी.पी.आर जैसे तकनीकों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मृत्यु का सटीक समय जानने के लिए आधुनिक उपकरण अति आवश्यक है। उन्होंने विधि की दृष्टि से मृत्यु के सटीक समय के निराधर पर चर्चा का स्वागत किया। प्रोफेसर डॉ दिनेश कुमार श्रीवास्तव ने अपने व्याख्यान में भारत में मृत्यु की एक विधिक की परिभाषा होने के लिए बल दिया तथा उन्होंने बताया कि मृत्यु की कोई विधिक परिभाषा न होने के कारण डॉक्टरों को मृत घोषित करना अनिश्चितता का विषय हो जो हो गया है। क्योंकि आजकल यदि कोई व्यक्ति गंभीर हालात में अस्पताल में पहुंचता है तो डॉक्टर लोग उसे कृतिम वैज्ञानिक उपकरणों के द्वारा उसके हृदय एवं श्वास क्रिया को जारी रखते हैं तथा उसे कब हटाया जाए, इस पर उच्च न्यायालय के दो निर्णय आने के कारण कृत्रिम उपकरण को मरीज से कब हटाया जाए इसकी विधिक प्रक्रिया जटिल हो गई है। उन्होंने मृत्यु की छः अवस्थाओं का उल्लेख किया तथा किस अवस्था को विधि में मृत्यु माना जाए, इसके लिए विधायिका का आवाहन किया कि विधायक का इस पर एक सुनिश्चित विधि बनाएं। डॉ प्रदीप कुमार प्रोफेसर इंचार्ज एवं ए एम लॉ कॉलेज गया एवं संकायाध्यक्ष विधि संकाय मगध विश्वविद्यालय बोधगया ने “विज्ञान एवं विधि के दृष्टि में मृत्यु” से संबंधित वर्तमान में चिकित्सक के चिकित्सीय उपेक्षा के कारण कुछ लोग कोमा में चले जाते हैं। जिसके कारण उनको शरीर एवं आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। चिकित्सक लोग प्रायः बिना किसी जांच के दवा जो लिख देते हैं उसके कारण भी मरीज को काफी नुकसान होता है। जिसमें उसके दैहिक स्वतंत्रता संवैधानिक अधिकार का हनन होता है। यह विचारणीय बिंदु है
मुरारी कुमार हिमांशु जो गया बार एसोसिएशन के सचिव हैं ने भी मृत्यु का विधिक दृष्टिकोण से व्याख्या किया एवं अन्य वक्ताओं ने भी उपरोक्त विषय पर अपने अपने विचार रखे। मंच का संचालन विधि महाविद्यालय के शिक्षक डॉ सुशांत कुमार मुखर्जी ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन पवन कुमार मिश्रा ने किया। इस आयोजन के सफल संपादन में विधि महाविद्यालय के शिक्षक शिक्षा डॉ. स्वाति एवं कौशल किशोर द्विवेदी ने सक्रिय साथ दिया।
वरीय संवाददाता देवब्रत मंडल